Friday 28 October 2011

एक छोटी सी चाहत

थोड़ी नादानी ही सही तुमसे
थोड़ी बैमानी ही सही तुमसे
मिजाज़-ए-इश्क मचल गया है
कि दिल ज़रा बहक गया है

आओ मैं तेरा आलिंगन करूँ
फिर तुझको मैं चुम्बन करूँ
हवस का इसे तुम नाम न दो
मेरे आगोश में तुम्हे भी सुकूँ होगा ........

तलब

निगाह-ए-यार की क्या बात है ....
रुखसार-ए-यार की क्या बात है ..
इजहार-ए-यार की क्या बात है...
उस दिलदार की क्या बात है...

वह हमसुखन है, वह दिलनशी है
उसकी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी है
इकरार है उससे , इजहार है उससे
अपनी तलब तो बस उसकी आशिकी है ..... 


Thursday 27 October 2011

पुराना ख़त


एक शायर था, जो कभी आशिक भी था
थोडा प्यासा भी था और दीवाना भी था
एक रोज़ मैंने देखा उसको
पुराने ख़त को नए लिफाफे में
महफूज़ कर के रख रहा था
पुरानी संदूक में, किताबों के भीतर


मैंने पूछा कि ये क्या है
जबाब में मैंने देखा कि
वह निकलता है उस लिफाफे को
कभी होठों से चूमता है
कभी आखों पे रखता है
कभी सीने से लगता है
और फिर कहीं खो जाता है
शायद किसी पुरानी यादों में


फिर मैंने उसे जगाया
तब उसने मुझे बताया
यह ख़त मेरे महबूब की है
बात भी बहुत खूब की है
यह एहसास दिलाती है
मुझको मेरी जिंदगी का

इतना कहते कहते
उसकी चौड़ी पेशानी पर
भाव के कुछ लकीर दिखाई देते हैं
जिसे मैं शायद समझ नहीं पा रहा था
की वह फिर बोल गया
यह ख़त मेरे महबूब की है
बात भी बहुत खूब की है 


फिर वह आखें बंद करता है
दुबकी लगाता है पुराने यादों के समंदर में
कभी मुस्कुराता है, कभी खिलखिलाता है
कभी आपने दोनों हाथों को यूँ पकड़ता है
मानो किसी को गले लगा रहा हो
और फिर कहता है
यह ख़त मेरे महबूब की है
बात भी बहुत खूब की है

इसके आगे वह कुछ बोल न सका
मुझे लगा मैंने कर दी है खता
छेडकर इनकी पुरानी यादों को
जिसमे एक ज़ख्म था
जिसे मैं कुरेद गया था !!!!

तन्हाई

अकेला हूँ, तनहा हूँ
इंसानों का मेला है
उसमे दिल अकेला है
हिज्र कि बातें मुझसे न पूछो
यहाँ कहा कोई मेला है

कल साथ चले थे चंद कदम
फिर बिछड़ गए तुम से हमदम
यादें तो केवल यादें है
मन भारी है कुछ यादों से
खुद तनहा हूँ कुछ वक्तों से


वो बातें क्या बईमानी थी
जो तुम मुझ से कुछ कहती थी
वो निगाहों का जो मिलना था
मिल कर फिर झुक जाना था
फिर उठता था नई उमंगो से
ख़ामोशी रौशन होती थी
एक बार पुनः निगाहों का मिलन
लगता था जैसे आलिंगन

तुम कहा गई कुछ पता नहीं
कोई क्या पूछे किससे पूछे
तुम आओगी तो मैं जागूँगा
मन फिर से पुलकित होगा
हर्षित होगा, खिल जायेगा
फिर साथ चलेंगे कुछ दुरी तक
जहाँ अपना आशियाँ होगा
फिर मिलकर जीवन जियेंगे

ख्वाइश, जिंदगी से

ऐ जिंदगी
मैं तुझसे कुछ भी नहीं मांगूंगा
और न ही तुम्हारे सामने हाथ भी फैलाऊंगा
मुझे तुझ से कुछ शिकायत भी नहीं
बस चाहत सिर्फ इतनी सी है
कि जो चेहरा मेरे अन्दर का है
वही चेहरा मेरे बाहर का भी रहे

वह चेहरा
जो निर्दोष भी है
थोडा नासमझ भी है
और थोडा नादाँ भी है
बस कभी अनजाने में
थोड़ी सी शरारत करता है
इसकी कोई बहुत बड़ी ख्वाइश भी नहीं है
बस हमेशा खुश रहना चाहता है
समझना चाहता है, सार्थकता जिंदगी की

एक शायरी ....

हकीकत बयां करना आसां नहीं होता
आइने के सामने चेहरा छुपाना आसां नहीं होता
पुराने यादों को भुलाना आसां नहीं होता
महबूब से नजरे चुराना आसां नहीं होता

आओ मनाये दिवाली

अंधकार है दूर करना , अन्तः मन का
कुछ बुझा हुआ सा , धूमिल हुआ मानस पटल का
दीये की रौशनी में  दूर होगा मन का अँधेरा
यकीं मानो अपने भी मन में होगा सवेरा

अपनी इस पावन मिट्टी से , हम मिलकर दीप बनाते हैं
अंधकार को दूर है करना , हम घी के दीये जलाते हैं
मुसीबतों से नहीं है डरना, हम मिलकर कस्मे खाते हैं
हम हाथ से हाथ मिलते हैं, हम मिलकर कदम बढ़ाते हैं

एक अरमां तुझसे

तुम्हारी नज़रों से घायल हुआ जाता है ये दिल
तुम्हारी ही बातों से पागल हुआ जाता है ये दिल
तुम्हारी ही ख़यालों में खोया जाता है ये दिल
तुम्हारी ही सवालों में उलझ जाता है ये दिल

एक तेरी बे-दिली है कि तू याद भी करती नहीं
मैं एक संग-दिल हूँ कि हमेशा तुझे याद करता हूँ
मेरी ख्वाइश मेरी तमन्ना हो तुम ऐ जाने वफ़ा
बड़ी चाहत है कि तुम भी कभी मुझे याद करो ....