Monday 25 September 2023

बज़्म बे-नूर नहीं था

दिल से निकला तो था  मगर दूर नहीं था
अलग रहता तो था मगर महजूर नहीं था

बुनियाद इश्क़ की अश्क पर टिकी रही 
अश्क बहता तो था मगर मौफ़ूर नहीं था
 
कुछ भी ख़याल नहीं कि आँखें क्यूँ झुकीं
ये कि दोनों अब  साबिक़-दस्तूर नहीं था

या तो जज़्बात या जुनूँ या अश्क या लहू 
कुछ तो जलता रहा बज़्म बे-नूर नहीं था

ख़्वाब का दरिया औ" ख़याल की कश्ती   
उस सफ़र में कौन था  जो रंजूर नहीं था 

मसअला-ए-दिल है  बस हूँक उठती रहे    
"धरम" ये मुआमला किसे मंज़ूर नहीं था
 

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महजूर: बिछड़ा हुआ
मौफ़ूर: असीमित
साबिक़-दस्तूर: पहले की तरह
बे-नूर: प्रकाश रहित
रंजूर: ग़मगीन
 

Saturday 9 September 2023

कोई बाग़बाँ नहीं दीखता

सितारों के पहले भी  कोई जहाँ नहीं दीखता 
किसी से भी मिलूँ  ये दिल  जवाँ नहीं दीखता
 
ज़ेहन में यूँ आग लगी सहरा भी राख हो गया
दिल में दर्द का अब कोई निशाँ नहीं दीखता

वादों की जो बात चली हर नज़र झुकने लगी
सितम का एक इल्म है  ये कहाँ नहीं दीखता 

इश्क़ दरिया से था मगर हासिल क़तरा हुआ      
अब रिश्ते में कोई ताब-ओ-तवाँ नहीं दीखता 

वो लहू से पैदा हुआ उसे अश्क़ बहा ले गया
कि आँखों में कोई राज़-ए-निहाँ नहीं दीखता

कैसा जश्न-ए-उल्फ़त है  हर चेहरा मायूस है 
बाग़ तो है "धरम" कोई बाग़बाँ नहीं दीखता 



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ताब-ओ-तवाँ: शक्ति, जोर, बल, क़ुव्वत, ताक़त
राज़-ए-निहाँ: वो राज़ जो ज़ाहिर न हुआ हो