Monday 31 December 2012

फ़कीरी

जब तलक फ़कीरी मेरे साथ है 
किसी ग़म का न मुझे एह्शास है 
मुफलिसी दूर रहती है मुझसे 
अमीरी से मेरा कोई वास्ता नहीं 

चेहरे पर अब कोई फ़िक्र नहीं है 
ग़म का भी कोई जिक्र नहीं है 
मैं यूँ ही जमीं पर लेट जाता हूँ 
आसमां के तारे गिनता रहता हूँ

Thursday 27 December 2012

"मूड आई "


आई आई टी बॉम्बे का "कल्चरल फेस्ट "
जी हाँ  यह "मूड इंडिगो "  है
किस "कल्चर" का "फेस्ट" है यह
मुझे पता ही नहीं चल पाया
और पता चले भी तो  कैसे
पहले कभी ऐसा देखा भी न था

कई तरह की  सुंदरियों के हुजूम थे
कुछ "मिनी स्कर्ट्स " में तो
कुछ "माइक्रो स्कर्ट्स " में थे
मेरे एक साथी ने कहा
अब तो नेनो का ज़माना है

अपने जीवन में इतनी सारी सुंदरियाँ
और वो भी  इतने कम कपडे में  
जी हाँ .. मैंने आज तक न देखा था

देशी बोल और उस पर बिदेशी धुन
शायद गधा भी इतना बेसुरा न हो
सिर्फ इतना ही नहीं
उस धुन पर लोगों का बेवाक हो जाना
कभी उछलना कभी झूमना
और कभी "यो - यो " करना
और भी कई तरह की हरकतें

षोडशी बालाओं का तो कुछ कहना ही नहीं
"फेविकोल" से चिपकने वाले गाने को
पूर्ण रूपेण चरितार्थ करते हुए
सबों का मनोरंजन कर रही थी


सुना था आई आई टी बॉम्बे का
"एक्सपोजर" बहुत अच्छा है
जो अब कुछ दिख भी रहा है
जी हाँ , दो साल मैंने
आई आई टी खड़गपुर में भी बिताया
"एक्सपोजर" वहां  भी था मगर
 वाकई बॉम्बे के जितना न था


Sunday 16 December 2012

मेरा कद


पुस्तैनी मंजिल की सीढ़ी चढ़ा था
एक सुखद एहसास हुआ
यहाँ तो हर पीढ़ी चढ़ा था
नक़्शे-पॉ ढूंढने लगा था मैं
बुजुर्गों के कद से
मेरा कद छोटा लगा था

Friday 14 December 2012

चंद शेर


   रात का जुगनू कितना रौशनी लुटायेगा 
   प्यास समंदर का हो तो क्या कतरा बुझा पायेगा
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  अब तो मयखाना भी सुकूँ नहीं देता 
  जिक्र-ए-जम्हूरियत वहाँ भी होने लगा
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   मेरे घर के दीवारों से भी 
   मुफलिसी दिखाई देती है 
   प्लास्टर सारे झड़ गए हैं
   अब सिर्फ ईट दिखाई देती है
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  इश्क में खाई शिकस्त याद आ गई 
  एक बार फिर उसकी याद आ गई
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  मैं तन्हा था अकेला था ठीक था 
  भीड़ में निकला तो लोगों ने लूट लिया
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  सागर के किनारे बैठा जलजला का खुराक हो गया 
  उसको चाहने वाला आज सुपुर्द-ए-खाक हो गया 
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  एक अजब दास्ताँ कुछ यूँ हुआ 
  अपने मकाँ को वह समाँ कह गया 
  औरों के दुकाँ को मकाँ कह गया
  नज़र मिली तो उसने नज़र झुका ली 
  और झुकी नज़र से ग़म-ए-दास्ताँ कह गया
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  मेरा भरम अभी रहने देना 
  तुम जब भी मुझको देखो 
  थोड़ा मुस्कुरा देना 
  मेरा भरम अभी रहने देना

Sunday 9 December 2012

एक अनुभूति


जज्बात की लाठी का खटखट
और फिर उसके आने की आहट
मानो ठंढी हवा का बदन से लिपटना
और फिर वो सिहरन जो सुकूँ देता हो

ख़ामोशी की जुबां
मानो कह रहा हो
लिपट कर चूम लो मुझको

सलोनी चेहरे की ख़ुशी
नज़र का थोड़ा झुकना
फिर यूँ ही कुछ बुदबुदाना
मानो कुछ कहना भी
और कुछ ना कहना भी

उसके हाथ पर अपना हाथ रखना
उसके कंधे पर अपना सिर रखना
ठंढी सासें लेना
और फिर खो जाना
दूर कहीं सितारों में

Friday 7 December 2012

तुम सिकंदर हो


मुकद्दर का फैसला है
तुम्हें मानना ही पड़ेगा
तुम सिकंदर हो
तुम्हें जीतना ही पड़ेगा

तुम क्यूँ फंस रहे हो कतरे में
जब दरिया खड़ा है तेरे दीदार के लिए
भुला दो, वो कल की बातें थी
देखो समंदर लहरा रहा है तेरे इंतज़ार में  

ख्वाब


ख्वाब की दुनियां बना  लेने दो
दिल के अरमां सजा लेने दो
यूँ तो हकीकत में मिलना मुमकिन नहीं
बस ख्वाब में एक आशियाँ बना लेने दो

लिपटने दो मुझको मेरे अरमां से
चूम लेने दो मुझको मेरे ख्वाब को
हकीकत में जन्नत मैंने देखी नहीं
बस एक नज़र ख्वाब में देख लेने दो

Monday 3 December 2012

एक पुराना लम्हा


चांदनी रात
मोर के पूरे फैले पंख
चितकोबरे रंग का एक मेमना
पीछे के झील से हवा का गुजरना
फिर तुम्हारे बदन को छू जाना
और तुम्हारी ठंढी आहें भरना

दूर के टीले पर तुम्हारा चढ़ना
और उछल कर चाँद को चूमना
कभी कभी सन्नाटे का कुछ कह जाना
फिर मेरा तुम्हारी नज़रों से पूछना
और फिर तुम्हारा निःशब्द उत्तर

नर्म हरी घास पर तुम्हारे कोमल हाथ
और तुम्हारे हाथ पर मेरा चूमना
तुम्हारी ठहरी सी आवाज़
और मेरे सांसों का थम जाना
बर्षों बीत गए इस लम्हे को
मगर लगता है जैसे कल की बात हो