Monday 7 September 2020

चंद शेर

 1.

वो चिराग़ ग़र जले तो घर जले  न तो बस बुझा रहे 
वो ख़ार जब भी उपजे "धरम" तो सीने में चुभा रहे 


2.

हरेक ख्वाहिश "धरम" रात सिरहाने से लुढ़ककर  क़दमों में पहुँचती है 
दिन भर पैरों तले कुचलाती है औ" फिर शाम ढ़लते ही सर चढ़ जाती है