Friday 23 February 2024

इश्क़ में शह-मात के पहले

कि मंज़र ऐसा कभी न था इस मुलाक़ात के पहले 
चेहरे पर कोई निशाँ न था  तिरे इस घात के पहले
 
रात को कुछ पता नहीं सुब्ह भी पूरी बे-ख़बर रही
किस शु'ऊर से बुझाई थी आग उस रात के पहले

कि ख़ंजर के नोक पर  हाथ बढ़ाया  दिल मिलाया
अजब तौर-तरीक़ा है  इश्क़ में शह-मात के पहले

रहमत भी बरसती है  तो कोई दाग  छोड़ जाती है    
क़त्ल होते हैं अरमाँ कश्फ़-ओ-करामात के पहले

यह दुनियाँ कैसी  यहाँ कौन ख़ुदा  यहाँ दीन कैसा     
कि घूँट लहू का पीना पड़ता है ज़ियारात के पहले

यह ख़याल किसका है "धरम" ये बातें किसकी हैं  
आँखों में क्यूँ उतर जाता है लहू जज़्बात के पहले    



'अलामत: निशान, चिह्न, छाप
कश्फ़-ओ-करामात: चमत्कार
ज़ियारात: किसी पवित्र स्थान या वस्तु या व्यक्ति को देखने की क्रिया   
जज़्बात : भावनाएँ, ख़यालात, विचार, एहसासात

Friday 2 February 2024

क़लम शाम-ओ-सहर देखे

ऐ! मौला आँखें फिर से  कभी न ये मंज़र देखे 
कि एक अदना सफ़ीने में डूबता समंदर देखे

सहरा से लिपटी ज़मीं आग से लिपटा आसमाँ 
ग़र ख़्वाब भी कुछ देखे तो सिर्फ़ बवंडर देखे 

कि सितम के धागे से बनाए रहमत की चादर 
ओढ़ाकर उसे क्या ख़ूब हर ज़ुल्म-परवर देखे

ये बुलंदी किसकी रहमत है ये ने'मत कैसी है     
पाकर जिसे ख़ुद को वहाँ  ख़ाक-बर-सर देखे

ये कैसे अहल-ए-दानिश हैं ये ता'लीम कैसी है 
लहू उगलता हुआ क़लम शाम-ओ-सहर देखे   

हद-ए-नज़र फैली कैसी तहज़ीब-ए-तमाशा है         
हाथों में "धरम" ख़ंजर लिए 'इज्ज़-गुस्तर देखे  
 
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ज़ुल्म-परवर : अत्याचारी
ने'मत : सम्मान का पद या पदवी
ख़ाक-बर-सर : निराश्रित, बेसहारा
'इज्ज़-गुस्तर : विनती करने वाला