Monday 8 May 2023

हमेशा पलटकर आईना रखा

वार जब भी किया  निशाना हमेशा सीना रखा 
मोहब्बत में  'अदावत का 'अजब क़रीना रखा
  
नशा अमीरी  का था क़ातिल का  इल्म भी था      
ग़ुरूर ऐसा की हमेशा पलटकर आईना रखा

जो अपनी मुफ़्लिसी का त'आरुफ़ बयाँ किया            
पहले अपनी पेशानी पर ग़ैरों का पसीना रखा
 
न तो दरिया में उतरने का हुनर न ही आश्नाई  
वो आवारगी ऐसी की पलटकर सफ़ीना रखा

जब से इश्क़ किया कई क़ब्र दफ़्न हैं सीने में   
दिल-ए-क़ब्रिस्ताँ में उलफ़त का दफ़ीना रखा

पूरे बदन पर सिर्फ़ दोस्तों के ख़ंजर के निशाँ 
'धरम' ख़ुद पास अपने ये कैसा ख़ज़ीना रखा 




क़रीना : ढंग, तौर तरीक़ा 
'अदावत : दुश्मनी, वैर, शत्रुता, द्वेष  
सफ़ीना : नौका, नाव, कश्ती, पानी का जहाज़
दफ़ीना : धरती में गड़ा ख़ज़ाना
ख़ज़ीना : खजाना / किसी पदार्थ की बहुतायत मात्रा 

Friday 5 May 2023

ग़ैरों का लहू आज़माना है

सितम का शक्ल जो भी हो  फ़क़त देखते जाना है
तौर-ए-वफ़ा यह है  कि हर ज़ुल्म पर मुस्कुराना है 

जब ख़याल यह है कि कोई रास्ता निकल आना है  
तब बात अपनी कहकर  क्यूँ फ़िर दिल दुखाना है
  
काग़ज़ क़लम रौशनाई का एक 'अजब ज़माना है 
यहाँ ख़ुद की क़लम में  ग़ैरों का लहू आज़माना है 

दीवानों की एक बस्ती है या हिज़्र का अफ़्साना है     
जो भी दीवाना है ख़ुद अपने ही रूह से बेगाना है  

ये एक रूहानी रिश्ता है बड़े अदब से निभाना है  
जिस्म से पहले रूह मर गया अब क्या सुनाना है 

ये महफ़िल हुक्मरानों की है  यहाँ ऐसा फ़साना है   
बतौर-ए-हुनर 'धरम' यहाँ तौर-ए-क़त्ल दिखाना है 

Tuesday 2 May 2023

क़रीब अपने बुलाते रहा

तल्ख़ियाँ कुछ कम न थीं फिर भी नज़र मिलाते रहा
दोनों हद्द-ए-अदब में रहे  दोनों का दिल दुखाते रहा

यूँ एक भी लम्हा साथ उसके कभी बसर हो न सका  
नज़र  ख़्वाब  दिल दिमाग़ सब जिस पर  लुटाते रहा
 
न दोस्त न रक़ीब न साथ उसके अपना चेहरा ही था    
आईने में ख़ुद के शक्ल को क़रीब अपने बुलाते रहा

एक बेचैनी सी छाई रही आँखों में नींद भी आई नहीं    
वक़्त से लिपटा तो न जाने कौन किसको सुलाते रहा

धूप चाँदनी चिराग़  सब से दिल को कुछ बेचैनी रही      
फ़िर ख़ुद अपने परछाँई में जिस्म अपना छुपाते रहा 
   
फ़ैसला-ए-जुदाई भी था  मिलने का एक वादा भी था 
दोनों ही महज़ फ़रेब था "धरम" रात भर सताते रहा