कि एक भी जाम कभी तश्ना-लब तक पँहुच न सका
क़ातिल का इरादा कभी क़त्ल तक पँहुच न सका
क़ातिल का इरादा कभी क़त्ल तक पँहुच न सका
कि सूरत-ए-यार बनाते बनाते इल्म दम तोड़ गया
मगर वो कभी उसकी शक़्ल तक पँहुच न सका
मगर वो कभी उसकी शक़्ल तक पँहुच न सका
उम्र-ए-उम्मीद-ए-इश्क़ दोनों के उम्र से ज़ियादा थी
नतीजा यूँ हुआ की कभी वस्ल तक पँहुच न सका
नतीजा यूँ हुआ की कभी वस्ल तक पँहुच न सका
"धरम" वो इश्क़ न था बस एक झूठी मोहब्बत थी
वो इश्क़ क्या जो फ़ना-ए-नस्ल तक पँहुच न सका
वो इश्क़ क्या जो फ़ना-ए-नस्ल तक पँहुच न सका