Tuesday 30 April 2019

चंद शेर

1.
न कुछ मैंने पूछा न कुछ उसने कहा औ" दरम्यान दोनों के सन्नाटा चीखता रहा
बात न तो नज़र से बयां हुई न ही ज़ुबाँ से 'धरम' वो वक़्त मुसलसल काटता रहा

2.
मुलाक़ात के हर रश्म को मैंने अंतिम संस्कार के तरह अदा किया
कि बाद उसके मैंने उससे 'धरम' फिर कभी नहीं कोई वादा किया

3.
इसी से ज़ख्म का 'धरम' अंदाज़ा लगा कि हर मरहम उस ज़ख्म पर सादा लगा
ढूंढती रही ज़िंदगी ख़ुद को मिट्टी में ज़मीं से उठने का फिर न कोई इरादा लगा

4.
मैंने तो दम तोड़ ही दिया है  "धरम" मगर जज्बा में दम अब भी बाकी है
मंज़िल पर पहुंचने के बाद भी लगता है की  कुछ और भी कदम बाकी है

5.
पहले इश्क़ हुस्न से शर्मिंदा था अब हुस्न इश्क़ से शर्मिंदा है
"धरम" तो पहले दीवाना था मगर अब क्या कहें वो रिंदा है

6.
हर बार मेरा ही चिराग-ए-लौ "धरम" हवा के ज़द में था
तूफाँ जब भी आया  मेरा घर हर  बार उसके  हद में था

7.
ये नासाज़ी ऐसी है कि  हर दुआ बे-असर है  औ" है हर दवा नाकाम
भूत इश्क़ का जब न तो चढ़े न उतरे "धरम" तो यही होता है अंज़ाम 

Tuesday 23 April 2019

रास्ता ख़ुद ही मुड़ जाता है

वक़्त हर  रोज  क्यूँ  रात  की दहलीज़ पर छोड़  जाता है
सुबह होने  से पहले  ही  वो मुझसे  रिश्ता तोड़  जाता है

कि हर शाग़िर्द मुझसे मिलकर  मुझे ही  तन्हा  करता है
वो हर रोज़  हिज़्र की  दीवार में  एक ईंट  जोड़  जाता है

जब चला था तो मैं  मेरी किस्मत औ" रहबर सब साथ थे 
क्यूँ मंज़िल क़रीब आते ही रास्ता ख़ुद ही  मुड़   जाता है

जब पास मेरे मसीहा औ" क़ातिल एक ही शक्ल में आए
तो मौत औ" जीवन दोनों "धरम" मुझसे बिछड़ जाता है

Wednesday 3 April 2019

चंद शेर

1.
जाने किस उम्मीद से  "धरम"  वो ख्वाईश फिर जगी
कि मेरे हलक़ में क्यूँ बुझी हुई पुरानी आग फिर लगी

2.
समंदर ने तो ता-उम्र प्यासा रखा प्यास अपने ही बदन के पानी ने बुझाई
अंत में  ख़ुद अपने ज़िस्म में "धरम" ख़ुद अपनी ही साँसों ने आग लगाई

3.
न ही कहीं कोई नज़र प्यासी है  न ही तस्सबुर में कोई चेहरा उभरता है 
कि सीने में न ही कोई साँस बाक़ी है 'धरम' न ही कभी दिल धड़कता है