वो डूबने के डर से दरिया-ए-इश्क़ में उतरा ही नहीं
जो समंदर उसके घर आया तो वो भी ठहरा ही नहीं
मोहब्बत में जीत से ज्यादा शिकस्त ख़ुशी देती है
मगर उस बेवफा को कोई शिकस्त गंवारा ही नहीं
उसके इंतज़ार में नज़र बिछा दी जवानी भी गुज़ार दी
मगर उसके तरफ से तो अब तक कोई इशारा ही नहीं
"धरम" दिल का राख सीने पर मलकर घूमता है दर-बदर
ज़माने में अब तो उसके जैसा कोई दूसरा बेचारा ही नहीं
जो समंदर उसके घर आया तो वो भी ठहरा ही नहीं
मोहब्बत में जीत से ज्यादा शिकस्त ख़ुशी देती है
मगर उस बेवफा को कोई शिकस्त गंवारा ही नहीं
उसके इंतज़ार में नज़र बिछा दी जवानी भी गुज़ार दी
मगर उसके तरफ से तो अब तक कोई इशारा ही नहीं
"धरम" दिल का राख सीने पर मलकर घूमता है दर-बदर
ज़माने में अब तो उसके जैसा कोई दूसरा बेचारा ही नहीं