मुझे अब तो अगले वक़्त का आलम औ" सफर देखना है
गुजरे वक़्त में जो पाया इल्म अब उसका असर देखना है
खड़ा रहूँगा चट्टान के मानिंद या उड़ जाऊँगा ग़ुबार बनकर
अपने कद-औ-कामत औ" गैरों के फूँक का असर देखना है
उठना चलना गिर जाना फिर उठना ऐसी ही मेरी फितरत है
वक़्त तू फिर बरस कि मुझे तो और खून-ए-जिग़र देखना है
पैरों तले ज़मीं खिसकना सर के ऊपर से आसमाँ निकलना
कि कितने और ज़हाँ में खुद को भटकते दर-बदर देखना है
सिर्फ चंद मौतें थोड़ी ज़मीं निगल लेना थोड़ा ज़हर उगल देना
ऐ! समंदर मुझे तेरी उफ़ान का कुछ और भी क़हर देखना है
घूंट ज़हर का पीना औ" पचा लेना जिस ज़हाँ में मयस्सर नहीं
मुझे तो ऐसे ही किसी ज़हाँ में "धरम" अपना गुज़र देखना है
गुजरे वक़्त में जो पाया इल्म अब उसका असर देखना है
खड़ा रहूँगा चट्टान के मानिंद या उड़ जाऊँगा ग़ुबार बनकर
अपने कद-औ-कामत औ" गैरों के फूँक का असर देखना है
उठना चलना गिर जाना फिर उठना ऐसी ही मेरी फितरत है
वक़्त तू फिर बरस कि मुझे तो और खून-ए-जिग़र देखना है
पैरों तले ज़मीं खिसकना सर के ऊपर से आसमाँ निकलना
कि कितने और ज़हाँ में खुद को भटकते दर-बदर देखना है
सिर्फ चंद मौतें थोड़ी ज़मीं निगल लेना थोड़ा ज़हर उगल देना
ऐ! समंदर मुझे तेरी उफ़ान का कुछ और भी क़हर देखना है
घूंट ज़हर का पीना औ" पचा लेना जिस ज़हाँ में मयस्सर नहीं
मुझे तो ऐसे ही किसी ज़हाँ में "धरम" अपना गुज़र देखना है