तेरे इश्क़ के जज़्बे को सलाम करता हूँ
मैं आज ये एलान-ए-आवाम करता हूँ
खुद्दारी मुझमे भी जगी है तुमको देखकर
मैं खुद को तेरे हुस्न का ग़ुलाम करता हूँ
मेरे सीने पर तेरा नक्श-ए-दिल अब भी है
बस छूकर उसे मैं याद-ए-तमाम करता हूँ
मुमकिन है वो हमें कभी भुला भी दे "धरम"
मगर मैं ये शेर उसके याद-ए-कलाम करता हूँ
मैं आज ये एलान-ए-आवाम करता हूँ
खुद्दारी मुझमे भी जगी है तुमको देखकर
मैं खुद को तेरे हुस्न का ग़ुलाम करता हूँ
मेरे सीने पर तेरा नक्श-ए-दिल अब भी है
बस छूकर उसे मैं याद-ए-तमाम करता हूँ
मुमकिन है वो हमें कभी भुला भी दे "धरम"
मगर मैं ये शेर उसके याद-ए-कलाम करता हूँ