Wednesday 30 January 2013

मैंने अपनाया है


बिखरे हुए रेत को मैंने फिर से सजाया है
वो लौट आई तो मैंने उसे फिर से अपनाया है
हाँ उसकी यादों को मैंने रह-रह के भुलाया है
मगर वो जब भी तन्हा थी उसे मैंने हँसाया है

Thursday 24 January 2013

इमां टूट गया


जिक्र-ए-यार हुआ
और ज़ख्म हरा हुआ
हाय! ये तेरी याद ने
सारे ग़म रौशन कर दिए

हुस्न भी था इश्क भी था
और मेरी वफाई भी थी
हाँ तेरे ही दिल में
मगर कुछ रुसवाई भी थी

दरख्त से कोई जवाँ पत्ता
बेमौसम क्यूँ टूट गया था

लहर तो यूँ उठा मानो मैं समंदर था
देखी तेरी वफाई तो कतरा भी न रहा
वो थी उसकी वफाई भी थी  "धरम"
मगर अब मेरे हिस्से उसका वो इमां न रहा




Wednesday 16 January 2013

चंद शेर

1.

मुलाकात का मसला है 
जज्बात का मसला है 
दिल फिर से फिसला है 
मगर न जाने क्यूँ 
कदम पत्थर सा हो गया 
अब आगे बढ़ता ही नहीं

2.

मेरे मरने के बाद याद आई मेरी यारी 
वह रे तेरी यारी वह रे तेरी तलबगारी

3.

हिज़्र का फिर से मौसम आया 
वो तन्हा रोया ज़ार-ज़ार रोया 
अश्क की बूंदें समेटी 
नाम-ए-यार लिख दिया 
जीनतकद: वीरां हो गया 
दिल फिर से परीशां हो गया 

जीनतकद:- प्रेयषी का घर

4.

वो जो चाँद बन के मिली थी तू 
तू अज़ीज थी मेरे करीब थी 
ये गिला तुझसे क्यूँ हो गया
मेरा चाँद तन्हा फिर हो गया

5.

पुराने वादों का सफ़र अभी बाकी था
वो फ़िक्र-ए-यार भी अभी बाकी था 
मैं चला गया था अकेले उस गली की तरफ 
जहाँ उसके साथ जाना अभी बाकी था

6.

उदासी चेहरे से उसकी छुपी ही नहीं 
नज़र यूँ झुकी कि फिर उठी ही नहीं
वो खुद परेशां थी जुबां भी खामोश थी 
बस सिसकियों ने ही तो कुछ कहा था 
अश्क था या समंदर पता ही न चला 
गहरा इतना कि मैं माप ही न सका 
मैं बहता चला गया संभल ही न पाया 
डूबने लगा तो सहारा उसके बाहों का ही था







Sunday 6 January 2013

चंद कदमों का सवारी


उम्र भर का साथ
रक्खा तो सही उसने निभाया ही नहीं
मिलकर साथ चले थे
मैं गिर पड़ा उसने उठाया ही नहीं
मैं खुद उठा चल पड़ा पास पहुंचा
मेरी आहट को उसने पहचाना ही नहीं

मेरा भरम अभी जिन्दा था
सामने ही मेरे वो परिंदा था
हाथ पकड़ा नाम पूछा
झटका हाथ मेरा और जुबां खामोश

मैं उसके साथ था खामोश था उदास था
अचानक एक और लम्हा आया
हलक में जाँ मेरी अटक गई थी
वो गैरों की बाँहों में लिपट गई थी

मेरे जज्बात पर हुस्न उसका भारी था
मैं तो बस चंद कदमों का सवारी था