1.
कि बाद एक सांस के दूसरे सांस को सीने में उतरने में अब वक़्त लगता है
ये कैसा वक़्त आया "धरम" जिसे भी देखो वो आदमी बड़ा सख्त लगता है
2.
कि सिर्फ मेरा लहू ही शामिल न था उस बुत को इन्सां बनाने में
ताल्लुकात हज़ारों लम्हों का पिरोया था 'धरम' उसमें जॉ लाने में
3.
वो शर्त ये थी कि बाद इन्तहाँ के भी न कभी ज़ख्म दिखाया जाए
न कभी आह निकले "धरम" न कभी ग़म-ए-दास्ताँ सुनाया जाए
4.
जायका भोजन का हरेक निवाले में 'धरम' बदल जाता था
न जाने किस-किस का लहू शामिल था उस एक थाली में
5.
कि ताज नापसंद था सर पर इसलिए हमेशा सर को झुकाए रखा
अपने इस हुनर से "धरम" उसने हमेशा ज़माने को भटकाए रखा
6.
इस हुनर से "धरम" वो हमेशा मेरे दिल में उतर कर आया
कि वो जब भी मेरे पास आया पंख अपने कुतर कर आया
7.
कि जो भी सुबह तक जला 'धरम' चौखट उसकी रौशन रही शब भर
न जाने कितनी साँसे टूटी थी एक गर्दन को खड़ा रखने में अदब भर
कि बाद एक सांस के दूसरे सांस को सीने में उतरने में अब वक़्त लगता है
ये कैसा वक़्त आया "धरम" जिसे भी देखो वो आदमी बड़ा सख्त लगता है
2.
कि सिर्फ मेरा लहू ही शामिल न था उस बुत को इन्सां बनाने में
ताल्लुकात हज़ारों लम्हों का पिरोया था 'धरम' उसमें जॉ लाने में
3.
वो शर्त ये थी कि बाद इन्तहाँ के भी न कभी ज़ख्म दिखाया जाए
न कभी आह निकले "धरम" न कभी ग़म-ए-दास्ताँ सुनाया जाए
4.
जायका भोजन का हरेक निवाले में 'धरम' बदल जाता था
न जाने किस-किस का लहू शामिल था उस एक थाली में
5.
कि ताज नापसंद था सर पर इसलिए हमेशा सर को झुकाए रखा
अपने इस हुनर से "धरम" उसने हमेशा ज़माने को भटकाए रखा
6.
इस हुनर से "धरम" वो हमेशा मेरे दिल में उतर कर आया
कि वो जब भी मेरे पास आया पंख अपने कुतर कर आया
7.
कि जो भी सुबह तक जला 'धरम' चौखट उसकी रौशन रही शब भर
न जाने कितनी साँसे टूटी थी एक गर्दन को खड़ा रखने में अदब भर