दिलों के फ़ासले को मापने का कोई पैमाना तो हो
मैं दो कदम चल भी लूँ कोई अपना ज़माना तो हो
मैं दो कदम चल भी लूँ कोई अपना ज़माना तो हो
किसी नज़्म को ग़र शक्ल देना भी हो तो कैसे दूँ
आँखों में कोई इल्म ख़याल में कोई फ़साना तो हो
कलेजे से दिल निकालकर हाथ में लिए फिरता हूँ
दिल दूँ भी तो किसे दूँ कोई मुझसा दीवाना तो हो
उस एक शाम के ख़ातिर कितने शाम को जलाऊँ
कि ख़्वाब ख़याल नज़र तिरा कहीं ठिकाना तो हो
रास्ता ख़त्म हो गया मंज़िल का कोई पता न चला
कैसे कहूँ की होश में था ऐसा कोई बहाना तो हो
अपने चेहरे पर "धरम" अपना ही चेहरा चढ़ाना
ख़ुद को कभी इस तरह तन्हाई में सजाना तो हो