Wednesday 21 August 2019

ये कौन सा रिश्ता है निभाने के लिए

कि हर बार उसके  हर्फ़ में  मुझे अपना हर्फ़ मिलाने के लिए
ख़ुद को ही मारना पड़ता है  उसको ख़ुद में  जिलाने के लिए

ज़माने की छुरी से सामने  उसके अपने ही ज़िस्म को काटना
कि न जाने क्या-क्या करना पड़ता है एक दर्द जताने के लिए

जब ख़ुद से ही बे-हिसाब उम्मीद लगाए बैठे हैं तो क्या कहने
अपनी ही नींद उधार लेनी पड़ती है  ख़ुद को  सुलाने के लिए

बस आह! निकलती है  दूर तक फैले वीरां दश्त को देखकर
आज यहाँ कोई भी तो नहीं है  मुझे वापस घर बुलाने के लिए

हर ख़्वाब हकीकत था  हर लोग अपने थे  जब जाँ बाक़ी थी
जब जाँ निकली  पास कोई भी न था मुर्दे को सजाने के लिए

खुली आँखों से हकीकत भी नहीं दिखता  तो ख़्वाब का क्या
कभी नींद भी तो आती नहीं  कोई भी ख़्वाब दिखाने के लिए

ख़ुद पर हुए मुसलसल ज़ुर्म का नतीजा  अब और क्या होता
दर्द-ओ-आँसू  दोनों उधार लेता हूँ  ख़ुद को  रुलाने के लिए 

प्रारम्भ मध्य या अंत किसी का कुछ भी तो पता नहीं चलता
दरम्याँ हमारे  ये कौन सा रिश्ता है  "धरम"  निभाने के लिए

Tuesday 20 August 2019

कुछ भी तो बचा न था उस सहारे में

न जाने क्या-क्या कह गया  वो एक लम्हा बस इशारे में
लोग समंदर तैर के आ  गए मैं बस बैठा रहा किनारे में

हरेक साँस पर अब क्या  कहें बस दम ही निकलता था 
देखने को और  कहाँ कुछ  रह  गया था  उस  नज़ारे में

ता-उम्र  वो जानते रहे  कि मेरे ज़िंदगी का  सहारा वो थे
बाद मेरे मरने के  कुछ भी तो बचा  न था उस  सहारे में

एक अजनबी  आवाज़ थी  जो मेरे कानों तक आ रही थी
देखा गौर से  मगर कोई चेहरा न उभरा उसके पुकारे में

जहाँ सूखा था दरिया 'धरम' वहाँ कैसे फिर उफान आया 
हम सोचते रहे कुछ भी पता न चला कुदरत के इशारे में 

Monday 19 August 2019

चंद शेर

1.
वो दीपक बुझने के बाद "धरम" रात अमावस की यूँ ठहर गई
कि मैं वहीँ खड़ा का खड़ा रह गया औ" पूरी ज़िंदगी गुज़र गई

2.
क्या कि दर्द-ए-इश्क़ का इलाज़ हो न सका और मर्ज़ बढ़ता ही गया
बाद एक एहसान के 'धरम' दूसरा एहसान और कर्ज़ बढ़ता ही गया

3.
जो उड़ के ग़ुबार दामन तक आ गया तो न जाने "धरम" कितने ज़ख्म छुपा गया
चेहरे पर अब दर्द की ख़ुमारी दिखाई नहीं देती ज़ीस्त किसी और रंग को पा गया

4.
मंज़िल को पाने की उम्मीद पूरी तरह से टूटी न थी इसलिए रास्ता बदल लिया था
मंज़िल को पाने से पहले मिले सारे सोहरत को 'धरम' मैंने ख़ुद ही निगल लिया था

5.
उसने ग़ुबार सिर्फ मेरे ज़िस्म से हटाया आँखों में रहने दिया
फिर अपनी महफ़िल में 'धरम' उसने मुझे कुछ कहने दिया

6.
हर मुलाक़ात में उसने बस एक एहसान उतारा मुझपर
करके मेरी ऑंखें नम 'धरम' क्या-क्या न गुजारा मुझपर

7.
दवा तब दी गई थी "धरम" जब ज़ख्म ख़ुद-ब-ख़ुद भर आया था
शोहरत भी तब मिली थी जब एक दाग दामन में उभर आया था

8.
ज़िस्म को जब से "धरम" दो रूहों ने घेर रखा है
ज़माने ने तब से उस ज़िस्म से नज़र फेर रखा है

9.
कि उसका क्या अंदाज़-ए-ज़माना है एक अलग ही फ़साना है
क्या कहें "धरम" दिल से दिल मिलाना है  औ" दिल दुखाना है

Friday 9 August 2019

ख़ुद से भी कुछ कहता नहीं

अश्क़ सूख गए आँखें नम  नहीं होती  दिल  बुझता नहीं
उसकी  नज़र से  अब तो कहीं भी  चिराग़  जलता नहीं

महफ़िल में  हर बात पर  बस  झुककर  सलाम करना 
क्या  कहें  सामने तेरे  अपने कद का  पता चलता नहीं

जिसको  हमने   इश्क़ समझा  वो तो  कभी था ही नहीं
एक बुझा  चिराग़ था  वहाँ अब  भी  कुछ  मिलता नहीं

बस  एक  महफ़िल  लूटी गई तो  दिल ऐसा  तन्हा हुआ
कि  हद-ए-निगाह  तक  अब कहीं भी दिल लगता नहीं

बस एक बात कही थी "धरम" दिल टुकड़ों में बँट गया 
अब तो ऐसे ख़ामोश हैं कि ख़ुद से भी कुछ कहता नहीं 

Wednesday 7 August 2019

एक किरदार में दूसरे किरदार को जिला दिया गया

अभी तो मैंने कुछ कहा भी न था  औ" फैसला सुना दिया गया
इश्क़ के समंदर में फिर से  ज़हर नफरत का फैला दिया गया

फिर वो बात मोहब्बत से की गई फिर वो ज़ख्म सहलाया गया
बाद सहलाने के  ज़ख्म को फिर से कुरेदकर  रुला दिया गया

यहाँ तो हर बात अजीब लगती है  हर चेहरा अजनबी लगता है 
ऐसा क्यूँ हो गया कि  यहाँ हर ज़ुबाँ औ" शक़्ल भुला दिया गया 

किस उम्मीद से तराशा था पत्थर ये कैसी सूरत उभरकर आई
एक बार भर नज़र देखा फिर उस उम्मीद को सुला दिया गया 

जब भी देखा  उसका एक ही चेहरा  कई शक़्ल में  नज़र आया
आँख मूँदकर  हरेक शक़्ल को  एक-दूसरे से  मिला दिया गया

एक ही बात पर  कभी बेबाक़ हुए कभी तो दिल थामकर बैठा 
कि एक किरदार में दूसरे किरदार को 'धरम' जिला दिया गया