Monday 30 March 2015

पूछ लेता हूँ

अब मिल ही गए हो तो हाल पूछ लेता हूँ
तुमसे वो वर्षों पुराना सवाल पूछ लेता हूँ

दोनों जिस्म एक थे सासें तेज चल रही थी
तुमसे वो पुराने इश्क़ का ख्याल पूछ लेता हूँ

दिल की गहराई की अंदाजा तुम्हें तब तो न था
जो ढल गया है हुस्न तो ये मलाल पूछ लेता हूँ 

Friday 27 March 2015

और भी बवाल कर गए

मेरे सवाल पर वो फिर अपना सवाल कर गए
मेरे कटे जिस्म को वो फिर से हलाल कर गए

गर्दिश-ए-दौराँ से थककर बस घर लौटा ही था  
कि वो आकर मुझे तो और भी बेहाल कर गए

यूँ तो मेरा अपना ग़म-ए-ज़ीस्त कुछ कम न था
वो आकर तो मेरा जीना और भी मुहाल कर गए

ज़माने ने तो मुझे सिर्फ ज़ख्म ही दिए थे "धरम"
छिड़ककर नमक उसपर वो और भी बवाल कर गए

Tuesday 17 March 2015

चंद शेर

1.
वो एक खुमारी थी उतर गई अब होश में हूँ
ज़िंदगी तू  दूर चला जा मैं पुराने जोश में हूँ

2.
मुद्दतों बाद उस ख्वाब को नज़र भर देखा भी दिल में उतरा भी
आज सुकूँ लौट कर मेरे पहलू में आया भी सर रखकर सोया भी

3.
ज़माना हँस देता है मेरे हर अक़ीदत के बात पर
मेरे ख्वाइशों को वो रखता है सिर्फ अपने लात पर

जो बुलंदी है तो सब का हाथ होता है मेरे हाथ पर
औ" मुफलिसी में छोड़ देता है खुद अपने हालात पर

Monday 9 March 2015

ऐसा होने लगता है

जब भी कभी ज़ख्म-ए-दिल दुखने लगता है
लब पे आह होती है औ" सीना जलने लगता है

उम्मीद कहाँ है अब कि वो फिर लौट के आए
पौ फटता नहीं कि फिर अँधेरा घिरने लगता है

बेवाक़ मोहब्बत बेआबरू होकर नाचता है यहाँ
एक चिलमन गिरता है तो दूसरा उठने लगता है

मैं फ़क़त दिल का शहज़ादा था मेरी क्या मुराद थी
मुद्रा हर जगह मुफलिसी पर भारी पड़ने लगता है

आंधी में ये उम्मीद का दीपक कब तलक जलेगा
जो हवा के बस एक झोंके से ही बुझने लगता है

Monday 2 March 2015

ज़ख्म बढ़ता भी नहीं घटता भी नहीं

दिल दुखता भी नहीं सुलगता भी नहीं
अश्क़ बहता भी नहीं सूखता भी नहीं

ये कैसा अरमाँ पल रहा है मेरे दिल में
कि ज़ख्म बढ़ता भी नहीं घटता भी नहीं

मेरे नक़ाब-ए-इश्क़ का हश्र कुछ ये हो गया है
कि अब तो ये उतरता भी नहीं चढ़ता भी नहीं

इश्क़ का चिराग इस मोड़ पर आ गया है "धरम"
कि अब तो ये जलता भी नहीं बुझता भी नहीं  

बिफर रहा है

उसके आने की खबर जब से फैली है
हरेक चेहरा इस शहर में संवर रहा है

हुस्न का दरिया मेरे दर पर जो ठहर रहा है
बरसाके खुशबू मौसम भी अब निखर रहा है

सब का चेहरा उसके चेहरे पर टिका हुआ है
हर कोई किसी को पहचानने से मुकर रहा है

कि लुटा के दौलत एक अजनबी पर "धरम"
हरेक शख्स अब तो यहाँ पर बिफर रहा है