आज यूँ ही आइना देखा
हमशक्ल भी बेशक्ल सा लगा
गीत खुद गुनगुना रहा था
मगर सुर दूसरा सा लगा
वो गुफ्तगू भी यूँ
कुछ बेजां सा लगा
गम-ए-हिज्र भी यूँ
कुछ रूठा सा लगा
मन आसमां में उड़ रहा था
मगर पंख टूटा सा लगा
अपनी ही तबाही का गिला
यूँ कुछ बेमजा सा लगा
जब वो गुजरा था बगल से मेरे
फ़क़त रौशनी भी अँधेरा सा लगा
शिकस्त तो अपनी ही थी
मगर रंज फींका सा लगा
हमशक्ल भी बेशक्ल सा लगा
गीत खुद गुनगुना रहा था
मगर सुर दूसरा सा लगा
वो गुफ्तगू भी यूँ
कुछ बेजां सा लगा
गम-ए-हिज्र भी यूँ
कुछ रूठा सा लगा
मन आसमां में उड़ रहा था
मगर पंख टूटा सा लगा
अपनी ही तबाही का गिला
यूँ कुछ बेमजा सा लगा
जब वो गुजरा था बगल से मेरे
फ़क़त रौशनी भी अँधेरा सा लगा
शिकस्त तो अपनी ही थी
मगर रंज फींका सा लगा