Tuesday 23 February 2016

चंद शेर

1.

हुक़्म की ग़ुलामी की मैंने कहाँ कभी मनमानी की
ख़्वाब में भी "धरम" मैंने सिर्फ तुम्हारी ग़ुलामी की

2.

आ की क़त्ल करके मेरा तू आज़ाद हो जाए
औ" की क़त्ल करके तेरा मैं बर्बाद हो जाऊँ

3.

हर बार अपने कद-औ-कामत को मैंने कुछ यूँ बढ़ा लिया
देश की मिट्टी को उठाया "धरम" और माथे से लगा लिया

4.

तुम चाहो तो दिल में रखो न चाहो तो निकाल दो मुझे
इसपर भी दिल न भरे तेरा "धरम" तो हलाल दो मुझे

5.

बिछड़ी तो मुर्दा जिस्म थी औ" मिली तो ज़िंदा लाश
मुझे तो कभी न थी "धरम" ऐसी ज़िंदगी की तलाश 

Monday 8 February 2016

अभी और बाकी हैं

इस वक़्त के कोड़े अभी और बाकी हैं
कि ज़िंदगी में रोड़े अभी और बाकी हैं

इन राहों पर बिखरे हैं बेसुमार अड़चन
कि इन पाँव में फोड़े अभी और बाकी हैं

जो मुझमें अकड़ है औ" थोड़ी खुद्दारी भी
कि इस गर्दन की मरोड़ें अभी और बाकी हैं

पूरी तरह से अभी तक मैं टूटा नहीं हूँ "धरम"
कि इस बदन की निचोड़ें अभी और बाकी हैं 

Tuesday 2 February 2016

दिल का मामला यहाँ मंदा है

मेरे ख्यालों में अब भी वो सख़्श ज़िंदा है
हँसता मुस्कुराता खड़ा देखो वो परिंदा है

मुझे तो वो सख़्श बड़ा सलीकेवाला लगा
जिसे ज़माना थूकता औ" कहता वो रिंदा है

जब से भागा हूँ मैं ज़िंदगी से नज़रें चुराकर
अब हर जगह दिख रहा बस एक ही फंदा है

रात मिलन की थी सितारों ने गुस्ताख़ी कर दी
चौदवीं के रात में सर झुकाये खड़ा अब चंदा है

मोहब्बत अब जिस्मफरोशी पर उतर आई है
दिल का मामला तो "धरम" अब यहाँ मंदा है