Monday 30 January 2012

अब साथ चलूँ

आओ चंद कदम अब साथ चलूँ
प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लूँ 
मोहब्बत के चार आयतें लिख दूं
आसमां पर तेरी सलामी लिख दूं


नर्म घास पर से ओस की बूंद चुरा लूं
ठंढे झील के पानी को थपथपाऊँ
बारिश के बूंदों को आखों पे रख लूं
सूरज के किरणों की सीढ़ी बना लूं

बहती हवाओं को मुट्ठी में पकडूं
मोर के पंख तेरे बालों में लगा दूँ 
तेरे गालों की लाली को होठों पे रख लूं
तुझे बाहों की कैची में कैद कर लूं

आसमां से चंद सितारे तोड़ लाऊँ
उछलकर चांद को चूम लूं
गुलाब की पंखुड़ी से तेरा नाम लिखूं
तेरे लिखावट के कागज़ की छतरी बनाऊँ

आओ चंद कदम ...

Sunday 29 January 2012

मेरे प्यार का...

वो गुज़रा ज़माना वो दिलकश फ़साना
वो पंख पुराना मेरे प्यार का
कभी रुक-रुक के चलना कभी चल-चल के रुकना
वो शोख अदा मेरे प्यार का 

कभी बुत बनाना कभी बुत सा बनना
वो बुतपरस्ती मेरे प्यार का
कभी ग़म की बातें कभी बेग़म की बातें
वो बातें बनना मेरे प्यार का

कभी साँसों की गर्मी कभी गालों की नरमी
वो फिर बुदबुदाना मेरे प्यार का 
कभी ख़ामोशी की रातें कभी शब भर की बातें
वो पल-पल का कटना मेरे प्यार का

कभी होकर न होना कभी न होकर भी होना
वो अहसास पुराना मेरे प्यार का
वो गुज़रा ज़माना वो दिलकश फ़साना
वो पंख पुराना मेरे प्यार का...

Monday 23 January 2012

चंद शेर

1.

उसको चेहरे का गुरुर सियासी मद से भी ज्यादा था
नामुराद आइने ने बताया वह अदना सा एक प्यादा था

2.

बेवाक परिंदा पिंजरे से एक पाक इरादे से निकला
उछलकर चूम आया वह चमकते चाँद का चेहरा

3.

फैसला-ए-इश्क वो क्या फरमाते हैं
जिनके घरों के बुत भी नकाब लगाते हैं


तुम रूठो मुझसे अब नाहीं

मेरे मन का तुम हो माहीं
तुम रूठो मुझसे अब नाहीं
राह चलत जब मैं थक जाऊं
तुम दो मुझको गलबाहीं
तुम रूठो ...

बीच दुपहरी जब मैं निकलूं
तुम दो जुल्फों की छाहीं
तेरे नयनन की प्यासी अखियाँ
तुम मुझको पिला हमराही
तुम रूठो...

तेरी मूरत का मैं हूँ जोगी
तुम बिसरो इसको नाहीं
झूठी दुनिया मन भटकावे
तुम इसमें पड़ो अब नाहीं
तुम रूठो ...

बाँह पसारे आश तकत हूँ
तुम दौड़ मेरे हमराही
मुझको अपने अंक लगाकर
करदे, पूरण मुझको अब माहीं
तुम रूठो मुझसे अब नाहीं...

Sunday 15 January 2012

वह बूढ़ा बरगद

दुर्गा स्थान के प्रांगन का
एक बूढ़ा बरगद
हमारे पुराने सभ्यता की
गवाही देता था
जिसकी विशाल भुजाओं में
हमारी कुछ संस्कृति सुरक्षित थी

उस पेड़ के छाहँ में कभी
सुहागिने अपने सुहाग के
दीर्घ जीवन की कामना करती थी
और वह बरगद पितामह की तरह
अपने दोनों हाथों से आशीर्वाद देता था
जिसे सुहागिने अपने आँचल में समेट लेती थी

कुछ लोग कहते हैं, वह बरगद बीमार हो गया था
और उसके पेट में एक धोधर भी हो गया था
तब गाँव के लोगों के बीच बैठक हुई
फिर बरगद की नीलामी लगाई गई

बात तय हुई कि पहले बरगद का हाथ कटा जाय
फिर कमर तोड़ी जाय
और फिर अस्तित्व विहीन कर दिया जाय
बैठक के इस नतीज़े पर कुछ आखें नम भी हुई
मगर काम पूरा कर दिया गया 

अब उस जगह कि मिट्टी पर फर्श बन गया है
जिसपर थोडा राजनीती का रंग भी चढ़ गया है
जब भी उधर से गुजरता हूँ
एक कसक सी होती है
और ऐसा महसूस होता है
कि वह जगह बिलकुल वीरां हो गया है
जबकि वहां भीड़ अब भी जवां है

मोहब्बत एक बार फिर

मोहब्बत एक बार फिर
मुझको बेजाँ कर गया
हसरत दिल की पूरी भी न हुई
वह फिर रूठ कर गया

नैन भर देखा भी न था
वह फिर ओझल हो गया
सासें थम सी गई
मन उदास हो गया


एक हूँक सी उठी
थोड़ी बेचैनी भी हुई
कुछ ज़ख्म भी दिए
थोडा दर्द भी हुआ

कुछ सवाल उसके चेहरे पर भी था
जो मुझको जबाब दे गया
खुद बे- करार होकर
मुझको बेक़रार कर गया

Sunday 8 January 2012

धरती का स्वर्ग

पुरखों द्वारा बनवाए खपरैल के एक कमरे में
फर्श पर चटाई बिछाकर मैं लेटा हुआ था
दिन के दोपहर में खपरैल के बीच के छिद्र से
सूरज की कुछ मोटी तीब्र किरणे फर्श पड़ रही थी
जिसमे धूल के कण स्पष्ट दिखाई दे रहे थे
बर्षों पहले बचपन में कभी उसी कमरे में
पिताजी के साथ बैठकर सूर्य- ग्रहण देखा करता था

कमरे के दीवार से सटाकर
काठ का एक पुराना आलमीरा रखा था
मैंने उस आलमिरे को खोलकर देखा
एक खाने में अब भी मेरे स्वर्गीय दादाजी के
जरुरत के कपडे और कुछ किताबें रखी थी

दूसरे खाने में तस्वीरों के कुछ एल्बम रखे थे
मैंने उन सारे एल्बम को उठाया और फिर
उस चटाई पर बैठकर तस्वीरें देखने लगा
उनमे कुछ तस्वीरें मेरे जन्म के पहले की भी थी
पुरानी यादें मानस पटल पर सचित्र दस्तक दे रही थी
बड़ा अद्भुत लग रहा था  

सूरज के किरणों की तीब्रता धूमिल हो चली थी
किरणें अब फर्श के बजाए दीवारों पर पड़ रही थी
मेरा व्यथित मन बड़ा ही शांत हो गया था
मुझे स्वर्ग के आनंद की अनुभूति हो रही थी
हाँ, सचमुच वह धरती का स्वर्ग ही तो है
जहाँ पुरखों की स्मृति बसती है.