1.
कि उदासी लब को चूमे औ" ज़ख्म दिल को रौशन करे
तो भला इस जहाँ में 'धरम' क्यूँ मेरा कोई व्यसन करे
2.
दरिया को बीच से काटकर "धरम" नया किनारा बनाया गया
किसी एक के सहारे के लिए कितनो को बेसहारा बनाया गया
3.
क्यूँ तेरे एक ख़्वाब के बाद "धरम" कभी भी कोई दूसरा ख़्वाब नहीं आता
कि दिल धड़क के रुक जाता है मगर हाँ कोई मुक़म्मल जवाब नहीं आता
4.
कि कितने गुनाहों के बाद हम उस वक़्त-ए-रुख़्सत के पनाह से निकले
खुद अपने ही सजाए क़ब्र से 'धरम' हम रंग-ए-चेहरा-ए-स्याह से निकले
5.
मैंने जब भी रास्ता बदला "धरम" मंज़िल को भी बदलते देखा
कि मैंने तो मील के पत्थर को भी मोम की तरह पिघलते देखा
6.
जब उसने जाने की ज़िद की "धरम" तो मैंने ख़ुद ही रास्ता बना दिया
बाद उसके फिर कभी न आह निकले दर्द पनपे ऐसा रिश्ता बना दिया
7.
इश्क़ का आगाज़ हुआ तो था हाँ! मगर हुस्न के ढल जाने के बाद
जैसे रात का मिलना हुआ "धरम" ख़ुर्शीद के निकल जाने के बाद
8.
परत दर परत खुलती गई नक़ाब दर नक़ाब सरकता गया
चरित्र औ" चेहरा दोनों 'धरम' कई आयाम में उभरता गया
कि उदासी लब को चूमे औ" ज़ख्म दिल को रौशन करे
तो भला इस जहाँ में 'धरम' क्यूँ मेरा कोई व्यसन करे
2.
दरिया को बीच से काटकर "धरम" नया किनारा बनाया गया
किसी एक के सहारे के लिए कितनो को बेसहारा बनाया गया
3.
क्यूँ तेरे एक ख़्वाब के बाद "धरम" कभी भी कोई दूसरा ख़्वाब नहीं आता
कि दिल धड़क के रुक जाता है मगर हाँ कोई मुक़म्मल जवाब नहीं आता
4.
कि कितने गुनाहों के बाद हम उस वक़्त-ए-रुख़्सत के पनाह से निकले
खुद अपने ही सजाए क़ब्र से 'धरम' हम रंग-ए-चेहरा-ए-स्याह से निकले
5.
मैंने जब भी रास्ता बदला "धरम" मंज़िल को भी बदलते देखा
कि मैंने तो मील के पत्थर को भी मोम की तरह पिघलते देखा
6.
जब उसने जाने की ज़िद की "धरम" तो मैंने ख़ुद ही रास्ता बना दिया
बाद उसके फिर कभी न आह निकले दर्द पनपे ऐसा रिश्ता बना दिया
7.
इश्क़ का आगाज़ हुआ तो था हाँ! मगर हुस्न के ढल जाने के बाद
जैसे रात का मिलना हुआ "धरम" ख़ुर्शीद के निकल जाने के बाद
8.
परत दर परत खुलती गई नक़ाब दर नक़ाब सरकता गया
चरित्र औ" चेहरा दोनों 'धरम' कई आयाम में उभरता गया