Sunday 31 March 2013

मत खेल प्रिये


क्यूँ खेले है तू खेल प्रिये
अब दिल में कहाँ है मेल प्रिये
रख कर तुम वो वादे झूठे
क्यूँ ढूंढे है तू खुद में सच्चे

मुफलिस हूँ मैं खड़ा सड़क पर
देखता रहता तुझको छुपकर
रहना है किस्मत से दूर
हो गया मुझे ये भी मंजूर

Wednesday 27 March 2013

प्रेमी-प्रेमिका की गोपनीय बातें


प्रेमिका प्रेमी से : तुम्हारा दिल पत्थर सा क्यूँ है ?
प्रेमी प्रेमिका से : तुम ही कहती थी न की दिल यदि पत्थर सा होता तो इसके टूटने का डर नहीं होता
प्रेमिका प्रेमी से : धत्त ये मैं तेरे लिए थोड़े न कही थी
प्रेमी प्रेमिका से : तो क्या तुम अपने लिए कही थी ?

प्रेमिका प्रेमी से : खैर जाने दो ... तुम तो यूँ ही बात बनाते हो.  अब तुम ये बताओ की तुम कभी-कभी गधे की        
                          तरह क्यूँ करते हो ....मुझे अच्छा नहीं लगता है...
प्रेमी प्रेमिका से : मुझे जब भी एहसास होता है कि तुम आज गधी कि तरह लग रही हो तो मैं सोचता हूँ कि अब
                        तो मुझे गधे के  तरह ही बात करना पड़ेगा नहीं तो तुमको बुरा लगेगा न !!

प्रेमिका प्रेमी से : तुम मुझे कभी-कभी गिद्ध कि तरह क्यूँ घूरते हो ?
प्रेमी प्रेमिका से :  जब तुम कोयल कि तरह सजकर कौवे की तरह बोली बोलती हो तो मुझे लगता है की मुझे
                          भी एक पक्षी की तरह ही व्यव्हार करना चाहिए...

प्रेमिका प्रेमी से : तुम बिल्कुल उल्लू हो ....
प्रेमी प्रेमिका से : हाँ ! यदि मैं उल्लू न होता तो मुझे ये कभी पता नहीं चल पाता की रात के अँधेरे में तुम मेरे
                         अलावा और कितनों से मिलती हो ...

प्रेमिका प्रेमी से : मेरी एक सहेली कविता (काल्पनिक नाम) का प्रेमी कितना अच्छा है .. वह उसकी हरेक बात
                         मानता है.."ही इज सो क्यूट"..
प्रेमी प्रेमिका से :  मुझे तो तुम्हारे अलावा अपने सारे मित्रों की प्रेमिकाएँ बहुत अच्छी लगती है.. पता नहीं
                         भगवान ने तुम्हारे अलावा बाकी सबों को इतना अच्छा क्यूँ बनाया... "ओह माई गॉड" !!!

Tuesday 26 March 2013

हरजाई

तुम तो मुझे जिंदगी की दुआ न दो 
तुम हरजाई हो मुझे झूठी वफ़ा न दो 
रिश्ते जोड़ना रिश्ते तोडना 
तुम्हारे लिए खेल सतरंज सा है
प्यार तो ऐसा है की सिर्फ रंज सा है 
उससे वफ़ा की बात पर "धरम" 
अब तो हर सक्श तंग सा है

Friday 15 March 2013

कमर टूट जाती है


मेरी कमर टूट जाती है
उधारी की लाठी पकड़कर खड़ा होता हूँ
मगर जब फ़क्त सूद
मूलधन से जियादा हो जाता है
मेरी कमर टूट जाती है

सड़क के किनारे खड़ा होकर
कातर निगाह से
बड़ी बड़ी गाड़ियों में झांकता हूँ
शाही कुत्तों को देखता हूँ
मेरी कमर टूट जाती है

महंगाई की मार ऐसी  है
की मुझ मुफलिस के पास
न "वायफ" है न "तवायफ" है
खाली थैली और खोखला दिल
हाँ मेरी कमर टूट जाती है

Saturday 9 March 2013

जिंदगी और रिश्ता


औरों के शिकस्त पर मुस्कुराना ठीक नहीं
खुद अपनी शिकस्त पर रोना  भी ठीक नहीं
जिंदगी है, यह बहुत कुछ दिखाती है
यह कर्म भूमि भी यह धर्म भूमि भी
यह कर्त्तव्य भूमि भी यह रणभूमि भी

यहाँ रिश्ते बनते भी है टूटते भी हैं
कुछ रिश्ते गांठ के सहारे चलते भी हैं
अर्थ के नींब पर टिके रिश्ते
जरा सी चूक पर बिखर जाते हैं
कुछ ठिठुरते रिश्ते कुछ उबलते रिश्ते
मानो शर्द भी गर्म भी और हवा भी
मन यूँ उलझता है कि अब क्या करें


प्रेम की परिभाषा भी कुछ बदल सी गई है
जैसे मानो की प्रेम कोई व्यापार हो
आह!अगर प्रेम निःस्वार्थ और निश्छल हो
तो जीवन सुखी भी और सफल भी हो