तेरे पहलू में आने से पहले मैंने अपना घर जला दिया था
ऐ! ज़िंदगी तुझे पाने के लिए मैंने सब कुछ भुला दिया था
कि ढ़लते हुस्न की तरह ही तेरे भी लौटने की नाउम्मीदी
ना कुछ हुआ तो तूने रुख़्सत के वक़्त कील चुभा दिया था
अब यहाँ से मैं किसके पहलू में जाऊँ किसका दीदार करूँ
मैंने तो अपने हर रिश्ते को बहुत पहले ही दफ़ना दिया था
मेरे इश्क़ औ" तेरे हुस्न को कुछ भी तो मुकम्मल ना हुआ
तूने मुझे तो बस सर-ए-आम एक तमाशा ही बना दिया था
ग़र खोल दूँ जुबाँ तो रुस्वाई चुप रहूं तो उम्र भर की तन्हाई
खुद अपने ही पहलू में तूने मुझे ये किस तरह गँवा दिया था
ज़िंदगी अब तुम क्यूँ आओ मेरे ख़्वाब में ही हक़ीक़त में ही
मैंने भी तुझे 'धरम' दिल-ओ-जां-ओ-ज़िस्म से हटा दिया था
ऐ! ज़िंदगी तुझे पाने के लिए मैंने सब कुछ भुला दिया था
कि ढ़लते हुस्न की तरह ही तेरे भी लौटने की नाउम्मीदी
ना कुछ हुआ तो तूने रुख़्सत के वक़्त कील चुभा दिया था
अब यहाँ से मैं किसके पहलू में जाऊँ किसका दीदार करूँ
मैंने तो अपने हर रिश्ते को बहुत पहले ही दफ़ना दिया था
मेरे इश्क़ औ" तेरे हुस्न को कुछ भी तो मुकम्मल ना हुआ
तूने मुझे तो बस सर-ए-आम एक तमाशा ही बना दिया था
ग़र खोल दूँ जुबाँ तो रुस्वाई चुप रहूं तो उम्र भर की तन्हाई
खुद अपने ही पहलू में तूने मुझे ये किस तरह गँवा दिया था
ज़िंदगी अब तुम क्यूँ आओ मेरे ख़्वाब में ही हक़ीक़त में ही
मैंने भी तुझे 'धरम' दिल-ओ-जां-ओ-ज़िस्म से हटा दिया था