Thursday 27 February 2014

दिल मेरा भर आया

ये किस के दर्द से दिल मेरा भर आया
जो ज़ख्म छुपा रखे थे वो फिर उभर आया

मैंने तो गुमनाम ज़िंदगी शुरू कर दी थी
ये कौन है जो मेरा नाम लेते हुए मेरे शहर आया

अंदाज़ मोहब्ब्त के हमने भी बहुत देखे हैं
ये कौन है जो चीरकर सीना मेरे घर आया

तड़पता ज़िस्म था और टुकड़ों में बिखरी ज़िंदगी
न जाने क्यूँ आज ख़ुदा को मुझपर रहम आया

क़त्ल मेरे मोहब्बत का हुआ खुद मैंने उसे दफनाया
वो कौन है "धरम" जो उसकी सूरत में फिर नज़र आया

Tuesday 25 February 2014

ग़ज़ल को जाया न करो

तुम मुझसे अब फासले पर रहा करो
मुझसे मिलो मगर अकेले में न मिला करो

तुमको मुझसे रंजिश भी है मोहब्बत भी है
अजीब किस्सा है इसे यूँ हीं न सुनाया करो

चोट दिल पे खाई है ज़ख्म पूरे बदन में है
तुम मुस्कुराकर इसे और बढ़ाया न करो

ग़ैरों का करम है मैं ज़िंदा हूँ साँस चल रही है
पिला के नज़र-ए-जाम मुझे रुलाया न करो

जब भी दिल दुखता है ग़ज़ल का घूँट पी लेता हूँ
फेंक कर मेरी ग़ज़लों को मुझे सताया न करो

जो उम्र ढल गई है तो तेरे ग़ज़ल पे जवानी आई है
ये बुढ़ापे का इश्क़ है "धरम" इसे यूँ ही जाया न करो


Sunday 23 February 2014

मकां और घर

बाज़ार से खरीदकर मकां उसको तुम घर कहते हो
मैं जो रहता हूँ तेरे दिल में मुझे तुम बे-घर कहते हो

न जाने किस-किस के हाथों में बिका है यह मकां
देखूं गौर से तो दीखता है हर खरीददार के निशां

उसके लहू की आग में जल उठा था किस-किस का घर
गुजरता हूँ उस कूचे से तो अब मिलता नहीं कोई सजर

न जाने किस मुकाम पर अब ये ज़िंदगी चली गई
पास उसके सिर्फ ग़म है अब तो हर ख़ुशी चली गई

सजाने-सवारने से मकां घर नहीं बन जाता "धरम"
मकां को घर बनाने में लगता है मोहतरम का करम




Sunday 16 February 2014

रू-ब-रू-ए-दर्द-ए-हिज्र

मैं जो उसका हुआ तो बस बे-आबरू हो गया
अब ज़िस्म के साथ जाँ भी बाज़ारू हो गया

जो धड़कता था दिल कभी अपने मिज़ाज़ से
अब उस बे-वफ़ा के इश्क़ से बीमारू हो गया

मिलाकर अश्क ज़हर में मैं रोज पीता रहा
ऐ दर्द-ए-हिज्र मैं तो तुम से रू-ब-रू हो गया

मत झांको अब किसी के दिल में ऐ "धरम"
अब तो यहाँ हर रिश्ता तश्न-ए-खूं हो गया

Wednesday 12 February 2014

चंद शेर

1.
आज प्याले से पिलाओ नज़र से पिलाओ
मैं ज़माने से प्यासा हूँ जी भर के पिलाओ

2.
न बरसाओ गुलफ़ाम ए ख़ुदा आसमां से
बिना साक़ी के भी कहीं शराब नशा देता है

3.
उसके बज़्म में जाकर पानी भी दवा हो जाता है
उसके लब से निकला हरेक हर्फ़ दुआ हो जाता है 

Sunday 9 February 2014

अब किधर जाएँ हम

सिल गए सारे होंठ अब हर जुबाँ खामोश है
लेकर प्याला लहू का खूब नाचता बदमाश है

गिरा कर रक्त मानव का दानव करता नृत्य है
करती वसुंधरा अफशोस हाय यह कैसा कृत्य है

मुद्रा की शक्ति के आगे अब कांपता महारुद्र है
हर ओर पूजी जाती है लक्ष्मी सरस्वती अब क्षुद्र है

मानवता का रक्षक अपने को बतलाता अब यहाँ गिद्ध है
अब यहाँ से किधर जाएँ हम धर्म का हरेक मार्ग अवरुद्ध है

कुतर कर गरुड़ का पंख उल्लू धर्म का करता प्रचार है
सबला के हाथ में है अबला दिन-रात होता व्यभिचार है

भेंड़ की खाल में छुपकर अब बैठता यहाँ सियार है
घोड़ा से ज्यादा "धरम" अब यहाँ खच्चर होशियार है

Thursday 6 February 2014

वैलेंटाइन वीक

मेरे प्यारे साथियों "वैलेंटाइन वीक" शुरू हो गया है। हम भारतीयों द्वारा "वैलेंटाइन वीक"  मनाना मानसिक
ग़ुलामी की एक और पहचान है। हमारा भारत देश हमेशा से एक स्वच्छ और स्वस्थ सभ्यता का गवाह रहा है। यहाँ के लोग प्यार को सालों भर बांटते आए हैं। यह साप्ताहिक प्यार महज एक दिखावा तथा ढकोशला है। इस छद्म और झूठे प्रदर्शन के लिए युवाओं से ज्यादा उत्साह युवतिओं में देखने को मिलता है। हरेक "वैलेंटाइन डे" को नए सिरे से मनाना आज-कल के युवाओं तथा युवतिओं का शौक हो गया है। इस साल का "वैलेंटाइन डे" किसी के साथ तो अगले साल का किसी दूसरे के साथ, वाह रे "अंग्रेजी प्यार " तुम तो धक् से शुरू होते हो और फ़क पे ख़तम हो जाते हो । यदि यह "अंग्रेजी प्यार " एक साल टिक भी जाये तो यह अपंग तो जरुर हो जाता है तथा बाकि के सालों  में बस एक घुटन। ऐसा रिश्ता एक घटिया और बीमारू किस्म का होता है। न तो इस रिश्ते में कोई अपनापन होता है और न ही कोई संवेदना। ऐसा रिश्ता महज एक हवस है जिसमे नंगा नाच ही प्यार के प्रदर्शन का पैमाना बन गया है। जो जितना नंगा होकर नाचेगा उसका प्यार उतना ही गहरा ,टिकाऊ तथा बिकाऊ होगा। यह परिवर्तन हमारे युवा पीढ़ी को दिखावा, बर्बादी तथा नैतिक पतन की ओर द्रुत गति से ले जा रहा है। ऐसी मानसिकता रखने वाले युवाओं-युवतिओं से एक स्वच्छ समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है ?



Tuesday 4 February 2014

बे-आबरू हो गए

महफ़िल में नज़र मिली तो बे-आबरू हो गए
वो पुराने हरेक मुलाकात से रु-ब-रू हो गए

मैं नज़रें मिलाए रक्खा था दिल थाम के बैठा था
खामोश जुबाँ से ही सही मगर गुफ़तगू कर गए

इज़हार-ए-मोहब्बत तो करने वाले बहुत लोग थे
मगर हम भी खुद को उसके चार-ओ-सू कर गए  
 
महफ़िल ख़त्म हुई और वो यार के साथ हो लिए
वो एक के हुए "धरम" औरों को तश्न-ए-खूं कर गए