1.
ये कैसी मुसीबत है कि दुआ-ए-हर्फ़-ए-आशिक़ भी बे-असर निकला
मेरे घर से मेरे इश्क़ का जनाज़ा निकला और मैं ही बे-खबर निकला
2.
जो जलाया था चराग-ए-इश्क़ मैंने कभी अपने जिगर-ए-लहू से
उसके दामन में तो बहार आई मेरे ही हिस्से में तीरगी निकला
3.
वो वफ़ा की बात थी और करार-ए-मिलन-ए-चौदवीं की रात थी
मैं ता-उम्र उसकी याद मैं बैठा रहा और वो इससे बे-खबर निकला
4.
हम न तो खुद के हुए न ही ज़माने के हुए
न साक़ी के हुए और न ही पैमाने के हुए
5.
हर्फ़-ए-दुआ-ए-कातिल था अच्छा हुआ बे-असर निकला
वो मेरे घर से होकर निकला और मैं उससे बे-खबर निकला
ये कैसी मुसीबत है कि दुआ-ए-हर्फ़-ए-आशिक़ भी बे-असर निकला
मेरे घर से मेरे इश्क़ का जनाज़ा निकला और मैं ही बे-खबर निकला
2.
जो जलाया था चराग-ए-इश्क़ मैंने कभी अपने जिगर-ए-लहू से
उसके दामन में तो बहार आई मेरे ही हिस्से में तीरगी निकला
3.
वो वफ़ा की बात थी और करार-ए-मिलन-ए-चौदवीं की रात थी
मैं ता-उम्र उसकी याद मैं बैठा रहा और वो इससे बे-खबर निकला
4.
हम न तो खुद के हुए न ही ज़माने के हुए
न साक़ी के हुए और न ही पैमाने के हुए
5.
हर्फ़-ए-दुआ-ए-कातिल था अच्छा हुआ बे-असर निकला
वो मेरे घर से होकर निकला और मैं उससे बे-खबर निकला