जेठ का महीना
दिन का दूसरा प्रहर
चिलचिलाती धूप
पसीने से लतपत एक बुढिया
माथे पर कुछ ईट लिए
आगे बढ़ रही थी
मानो कदम थक सा गया हो
मगर हौसले बुलंद थे उसके
कि शाम ढलेगी तो
उसकी मजदूरी के
सत्तर प्रतिशत पैसे तो मिलेंगे ही
जी हाँ
कुछ दिन पहले कि ही तो बात थी
ठेकेदार बोल गया था उसको
अब तुम बूढी हो गई हो
तुम्हे मैं पूरी मजदूरी नहीं दे सकता