Friday 30 November 2012

अधूरी मजदूरी


जेठ का महीना
दिन का दूसरा प्रहर
चिलचिलाती धूप
पसीने से लतपत एक बुढिया
माथे पर कुछ ईट लिए
आगे बढ़ रही थी
मानो कदम थक सा गया हो
मगर हौसले बुलंद थे उसके
कि शाम ढलेगी तो
उसकी मजदूरी के
सत्तर प्रतिशत पैसे तो मिलेंगे ही
जी हाँ
कुछ दिन पहले कि ही तो बात थी
ठेकेदार बोल गया था उसको
अब तुम बूढी हो गई हो
तुम्हे मैं पूरी मजदूरी नहीं दे सकता

Tuesday 27 November 2012

झूठी तस्सली


जिंदगी
तुम मुझसे दूर क्यूँ हो
कभी तो हल्की सी मुस्कराहट
और फिर कभी वही बेरुखी
फासला भी सिर्फ चार कदम का

मैंने देखा है तुमको मुखौटे बदलते
ढेर सारे चेहरे हैं तुम्हारे
बदला चेहरा और बदला अंदाज़
मैं अक्सर धोखा खा जाता हूँ
ये तुम हो की कोई और है

मगर फिर तुम्हारा
वही चेहरा नज़र आता है
जिसमे तुम अक्सर नज़र आती हो
कभी-कभी मुस्कुराती हुई
तस्सली होती है
कि यही तुम्हारा असली चेहरा है
मगर मुझे पता है
मेरी तस्सली झूठी है

Wednesday 21 November 2012

व्यक्तिगत लड़ाई


एक छोटी सी नैया मेरी
और सामने राक्षश सा समंदर
मुहं बाये, बाहें फैलाये
घोर चीत्कार कर रहा है
डराता है
कभी लहरों से
कभी तूफानों से

मुझे पार करना है
पतवार को तो
वह राक्षश खा गया है

मगर बचा है अभी
अपनी  दृढ इच्छा शक्ति
गुरु का मार्गदर्शन
पूर्वजों का सत्कर्म
बड़ों का आशीर्बाद

तौलना है
समंदर की लहरों से
मन की तरंगों को

यह तो व्यक्तिगत लड़ाई है
हार होगी तो बिल्कुल अपनी
जीत होगी तो बिल्कुल अपनी

Sunday 11 November 2012

नशा..

मुंबई का एक रेस्तरां 
मद्धिम सी रौशनी 
बहुत सारे हसीं चेहरे 
और उनके चेहरे की ख़ुशी 

कुछ तंग कपड़े 
और आकर्षक बदन 
अंग्रेजी गानों की धुन
और उसपर थिरकना 

दो-चार जाम
और आखों का चार होना
नशा किसमें जियादा है
मुश्किल है बताना

Monday 5 November 2012

एहसास


पलकों पर ओस की कुछ बूंदें  
हथेली पर थोड़ी सी मेहँदी
रुक्सार पर थोड़ी सी हल्दी
होठों पर अजीब सी मुस्कान

खुद अपने में ही तुम्हारा सिमटना
आईने से लुका-छिपी करना
सरकते दुप्पटे को झटक कर उठाना
अमावश में चांदनी बिखेरना

तुम्हारा जाना जैसे
मानो समुन्दर की लहरों का
दिल के ऊपर से गुजरना
थोड़ी बेचैनी और थोडा दर्द भी