Monday 31 May 2021

चंद शेर

1.

जब भी दिये की आढ़ में  अपना दिल जलाया 
बस "धरम" एक  सुहाना मुस्तक़बिल जलाया 

2.

कि हर मुलाक़ात में वो मुझे एक नया चेहरा देता है 
औ" मेरे हर पुराने चेहरे पर 'धरम' वो पहरा देता है 

3.
बुलंद हौसले "धरम" घुटनों के बल चले कदम साथ न चला 
कि न तो तजुर्बा साथ चला औ" न ही कभी राश्ता साथ चला

4.
कि ज़िंदगी हर कदम मेरे आरज़ू से कमती रही   
मेरे हर सजदे पर "धरम" मेरी बंदगी घटती रही 

Tuesday 11 May 2021

चंद लम्हें आवारा लाता था

रास्ते की  हर  रौशनी  जीवन  में  एक नया  अँधेरा  लाता था 
वो उगता  हुआ सूरज  कहाँ कभी  मेरे लिए  सवेरा लाता था 

साथ ज़माने  भर का था  तो जरूर  मगर  कभी पता न चला 
कि कौन  मेरे लिए  समंदर लाता था  कौन किनारा लाता था

यूँ तो नए  ज़ख्मों का दर्द बड़ा ही नायाब होता था  मगर क्यूँ 
दिल उस सख्श को ढूंढता था जो हर ज़ख्म दुबारा लाता था

वक़्त अब मरहम  अपने साथ ले जाता है  ज़ख्म छोड़ देता है 
कहाँ गया वो वक़्त जो साथ अपने चंद लम्हें आवारा लाता था 

बाद एक शाम के दूसरी शाम हो जाती थी दिन नहीं होता था  
रात ज़िंदगी तो क्या मौत के लिए भी न कोई सहारा लाता था

न जाने  क्यूँ  अपनो के बीच भी "धरम" हमेशा दम घुँटता था  
वो कौन था  जो हर रोज  मेरे लिए  साँस का पिटारा लाता था