Monday 20 February 2012

चंद-शेर

1. 

    पी कर ग़म को वो भी मुस्कुराते हैं "धरम"
      तुम भी अपने चेहरे पर ख़ुशी रखा करो ...



2.  

    सुना है पहले पत्थरों में भी दिल होते थे
       अब तो दिल ही पत्थर का हो गया है
          आओ हम भी तन्हाई में ढूंढे
            ख़ुशी के कुछ खामोश पल ...


3.


              पीकर घूँट लहू का उसपर छा जाती है खुमारी
              कोई तो बताओ यारो उसे क्यूँ है ऐसी बीमारी



4.


   ऐ ग़म,
  आओ मैं तुमसे सुलह कर लूँ
  सारे अरमानो का ज़बह कर दूँ
  तू भी तो अब याद रखेगा
  तुमने मुझपर फतह कर ली ...

Thursday 16 February 2012

ग़म-ए-फुरकत

जब वो मुझसे रूखसत हुई
मेरे सारे अरमां दफ़न-ए-तुर्बत हुई
अब उसे फुर्सत भी कहाँ
जो वो मेरी कुलफत करे
जब भी उसका जिक्र होता है
ग़म-ए-फुरकत बड़ा तीब्र होता है
चेहरे पर बनावटी कुर्रत रखता हूँ
शायद इसी आश में " धरम "
कि फिर जब उसका दीदार हो
उसे मेरे ग़म का एहसास न हो

Tuesday 7 February 2012

शायरी

1.

    उनकी बेअदबी पे भी हम अदब से पेश आते हैं
औरों को तो "धरम" उनकी बेअदबी भी मयस्सर नहीं


2.

दिल के दर्द से जो बड़ा पुराना रिश्ता था
एक रंज ने आज उसको भी तोड़ दिया

Monday 6 February 2012

शास्वत सत्य

जब भी कभी अकेले में
मैं शांत बैठा करता हूँ
ह्रदय में एक ज्वार सा उठता है
और वह विचल मन
दूर किसी सन्नाटे में खोजता है
जीवन के शास्वत सत्य को
फिर सामने घना अंधेरा छा जाता है
अन्तः मन का वह दीपक
उस घने अंधेरे को चीरकर
पढना चाहता है उस अविचल सत्य को
मगर वह निराश होकर लौट आता है
और फिर जीवन के आपा-धापी में खो जाता है

Sunday 5 February 2012

सियासी जंग

अभी घर से मत निकलो   सियासी जंग जारी है
 जनता भड़कने वाली है   बाहर दिक्र-दारी है

मुनासिब की बातें न करो   हर दौलतमंद भारी है
झोपड़ी गिरने वाली है  हवेली बुलंद सारी है

कहीं हाथ ऊपर है   कहीं  गजराज भारी है
कहीं फूल उग रहे हैं   कहीं साइकिल सवारी है

कहीं इंसान बिकते हैं    कहीं बेईमान भारी है
धरम की बातें न करो "धरम"  अब यहाँ कहाँ दीनदारी है

Thursday 2 February 2012

इश्क

इश्क कोई सियासी हुकूमत नहीं
यहाँ कोई कैसर नहीं कोई नफ़र भी नहीं

इश्क कोई इबादत-ए-खुदा भी नहीं
यहाँ कोई मौलबी नहीं कोई काफ़िर भी नहीं

इश्क कोई तिजारत-ए-दिल भी नहीं
यहाँ कोई ताजिर नहीं कोई खरीददार भी नहीं

इश्क तो वह पाक रिश्ता है " धरम "
जहाँ इन्सान एक दुसरे में फ़ना हो जाता है 

शायरी

1.

   सूखे अश्कों की लकीरें वो आइने में देखा करते हैं
   दिल जब भी दुखता है वो यूँ ही किया करते हैं


2.

      उसकी कश्ती डुबोने के लिए
      हवा का एक झोंका ही काफी था
      बारिश को यह पता भी था
      क़स्दन वह भी सितम ढा गया

3.

      जिगर का खून भी  असर न कर सका
   वो सितमगर तो बड़ा खून- ऐ-ख्वारी निकला