जब भी ख़्याल दिल-ए-आबाद हुआ उसे जला दिया मैंने
औ" बाद उसके मौत के बाद की नींद भी सुला दिया मैंने
कि जिस किरदार को मैंने पैदा किया पाला मशहूर किया
खुद अपनी मौत से पहले उसको ज़हर पिला दिया मैंने
ये इश्क़ हुआ कि क्या जाने मेरी मौत का तमाशा ही हुआ
क्यूँ कर खुद ही अपनी हस्ती को मिट्टी में मिला दिया मैंने
एक तो तू उजड़ा चमन औ" उसपर तेरी बातों में भी बेरुखी
हाय! ये किसके इंतज़ार में खुद अपनी हड्डी गला दिया मैंने
इस रात के ढल जाने के बाद एक और सुबह की उम्मीद है
इस बात पर अपने दिल में एक और चिराग़ जला दिया मैंने
मुझे अब भी रौशन हैं उम्मीदें कि ज़हाँ मेरा भी आबाद होगा
हरेक ग़म को ठोकर मारकर अपने पहलू से भगा दिया मैंने
तेरे दामन में सिर्फ कांटे ही आबाद होंगे फूल कभी न आएगा
कि ये लो तेरे मुकद्दर का फैसला आज तुमको सुना दिया मैंने
जिस बुझते हुए लौ को कभी सींचा था अपने ही खून से मैंने
आज खुद "धरम" अपने एक ही फूँक से उसे बुझा दिया मैंने