Wednesday 16 November 2022

हर फ़ैसला मंज़ूर रहता है

कि हर वक़्त ख़ामोश रहता है नशे में चूर रहता है
ये दिल धड़कता तो है मगर बहुत मजबूर रहता है

इल्म है पहले इश्क़ करता है फिर क़त्ल करता है 
वो एक ऐसा क़ातिल तो जो बहुत मशहूर रहता है 

सादा काग़ज़ पर बिना वादा के दस्तख़त करता है    
वो कैसा शख़्स है  जिसे हर फ़ैसला मंज़ूर रहता है

जो आग़ोश में होकर भी  एक फ़ासले पर रहता है 
वो ऐसा मर्ज़ है जैसे बिना ज़ख़्म के नासूर रहता है  

गर्म साँसें थी  थोड़ी उलफ़त थी थोड़ा फ़साना था  
ये कैसा ख़्वाब है हक़ीक़त से हमेशा दूर रहता है  

"धरम" कितनी भी सफ़ाई से क्यूँ न मिलूं किसी से 
बाद मुलाक़ात के चेहरे पर  ग़ुबार जरूर रहता है 

Monday 7 November 2022

सबका निवाला होने दे

कोई रौशनी को क़ैद न करे पूरा उजाला होने दे 
सरज़मीं जो भी पैदा करे सबका निवाला होने दे 

ऐ ख़ुदा कुछ और इल्म दे इंसानियत काफ़ी नहीं   
जिस्म को तू कर काशी दिल को शिवाला होने दे 

कि तख़्तनशीं ग़र भूल बैठे धर्म क्या है तख़्त का 
तू खींच ले रहमत अपनी उसका दिवाला होने दे 

हर्फ़ है या है ज़िंदगी तू कर फ़ैसला इंकार न कर 
ग़र तू नहीं तो ख़ुद को ख़ुद का रखवाला होने दे 

फ़िज़ा में घोलकर ख़ुशबू रंग बहार का दे 'धरम'
क़यामत तक इंसानियत का एक प्याला होने दे