Saturday 27 May 2017

हँस के टाल देता है

कि दरिया अनगिनत छोटे तरंगो को हँस के टाल देता है
कतरा एक छोटे तरंग से ही अपने आप को उबाल लेता है

कि कहीं तो भरी महफ़िल में भी कई चेहरा उदास रहता है
कहीं तो लोग हिज़्र में भी ढेर सारी खुशियाँ निकाल लेता है

कि एक तो मतलबी दुनियाँ औ" उसपर ये दौर-ए-इलज़ाम
अहा! ऐसे में भी कुछ लोग खुद अपनी गर्दन हलाल लेता है

कि कहीं तो वक़्त कुछ तारीख़ी ज़ख्मों को बखूबी भर देता है
कहीं तो वक़्त कुछ पुराने ज़ख्मों पर भी इस्तेहार डाल लेता है

कि कुछ लोग यहाँ तो गैरों के धक्का-मुक्की से भी गिर जाते हैं
कुछ तो "धरम" अपनो के धक्के पर भी खुद को सँभाल लेता है 

चंद शेर

1.
ग़र ज़माने के नज़रिया में "धरम" मेरा दो चेहरा है
तो लो मेरे नज़रिया में ज़माने का भी दस चेहरा है

2.
मेरे गिरेबाँ में ज़माने वालो तुम यूँ ही मत झाँकों
कालिख़ वाला चेहरा "धरम" खुद अपना भी ताको

3.
ये तेरी ही तो ख़ुदाई है जो मुझसे वसूली जाती पाई-पाई है
कि मुझको लूटे ज़माना "धरम" औ" सज़ा मैंने ही पाई है

4.
मेरे महफ़िल में "धरम" अब तेरा आना कम होता है
कि ये बात तो अच्छी है मगर देखकर ग़म होता है

5.
जो भी बची खुची बातें हैं "धरम" सिर्फ बेमानी है
न सीने में धड़कता दिल है न आखों में पानी है

6.
बुझते बुझते जल उठा "धरम" मन में फिर से भाव
हाँ! मगर इस भाव में था संवेदना का घोर अभाव

7.
मुझे कोई रौशनी मयस्सर नहीं "धरम" मेरा सूरज ही खुद अँधेरे में है
जिधर भी देखूं सिर्फ अंधकार है कि मेरा मुक़द्दर ही डूबता सवेरे में है

8.
मुँह पर पूरी पुती है कालिख़ फिर भी गाते रहते अपने उसूल
कि बात अगर नहीं माने तो "धरम" सीने में चुभा देते है शूल

9.
छद्म भिखारी बनकर लूटते औ" गाते अपना गुणगान
कि कौड़ी के भाव यहाँ "धरम" अब बिक रहा सम्मान

10.
कि एक लाठी के सामने सब ज्ञान है तेज बिहीन
अहो! "धरम" अब यहाँ कौन है ज्ञानी से भी दीन

11.
अजब खेल देखो ज़माने का यहाँ सब कुछ चल रहा है उल्टा
कि चरित्र प्रमाण पत्र "धरम" अब तो यहाँ बाँट रही है कुलटा

Friday 26 May 2017

रूह के आकार का आंकलन

तुम्हारा रूह विहीन भौतिक उपस्थिति
मेरे लिए बस एक भ्रम ही है तुम्हारे होने का
हाँ! तुम मेरे होने या न होने के भ्रम से
बहुत पहले ही निकल चुकी हो
यह मानकर कि मेरे रूह में
अब तुम्हारे रूचि का कुछ भी नहीं

मेरे रूह के प्रति तुम्हारा यह दर्शन सतही है
तुमने हमेशा मेरे रूह में उगे हुए
ऊंचाई के परछाँही को देखा हैं
सतह पर परछाँही दिखाई देती है
तुम्हें ये परछाँही देखने में
कोई मस्सकत नहीं करनी पड़ी
ऊंचाई का अक़्स सिर्फ धोखा है
प्रकाश के ख़त्म होने के साथ
वह विलीन हो जाता है

रूह के अंदर घुसकर देखना जरूरी होता है
संवेदनाएं तैरती हैं यहाँ
ढेर सारा आकार लेकर
कुछ रूह में बने गड्ढों में अटक जाती हैं
और कुछ ऊंचाई के पीछे छुप जाती हैं
ऐसी सारी संवेदनायें बाहर दिखाई नहीं देती
और न ही इनका अक़्स सतह पर दिखाई देता है
इन्हें महसूस करने के लिए
तुझे अपने रूह को मेरे रूह में उतरना पड़ता
यह एक कठिन काम है
खासकर उनके लिए
जो रूह को जिस्म से हमेशा कमतर आंकते हैं
और रूह के आभाषी आकर को देखकर
अपने रूचि की चींज़े खोजते हैं

रूह के अंदर गड्ढों में फंसी
वैसी ढेर सारी संवेदनाओं का चीत्कार
सतह तक नहीं पहुंच पाती
और ऊंचाई के पीछे फंसी संवेदनाएं
अपने होने का एहसास नहीं करा सकती
खासकर उन्हें
जो सतह को ही पूर्ण सत्य मानते हैं

तेरे रूह के आकार का आंकलन करना
मुझसे तो कदापि संभव नहीं
हाँ! मगर मेरे रूह का आभाषी आकार
अब तुमको मुबारक़ हो

Thursday 25 May 2017

पथिक हो तुम

पथिक हो तुम
और मैं तो बस एक पड़ाव था
तुम्हारे जीवन काल के रास्ते का
शायद बीच का ही कोई हिस्सा कह लो तुम
मैं अपने से पिछले पड़ाव को जानता हूँ
जहाँ तुम कभी ठहरी थी ठंढी सांस ली थी
और साथ में ज़िंदगी के चंद यादगार लम्हें भी

पथिक हो तुम
एक ही पड़ाव पर पूरी ज़िंदगी बिताना
तुम्हारे रूचि का नहीं
हाँ! तुम्हारे लिए
जीवन के यात्रा में बदलाव जरूर है
तुम्हारे कदम आगे बढ़े
अब तुम अगले पड़ाव पर थी
और तुम्हारा वो पड़ाव मैं था
मैंने स्वागत किया तुम्हारा
हाँ! मगर जब भी
पिछले पड़ाव का ख़्याल आता था
मेरा मन दुखता था
मुझे ऐसा लगता था की मैंने
पिछले पड़ाव से उसका पथिक छीन लिया
ये ज़द्दोज़हद मुझे बहुत दिनों तक कौंधता रहा
मगर मैं भी तो एक पड़ाव ही था
एक पड़ाव दूसरे पड़ाव से पथिक कैसे छीन सकता है
पड़ाव स्थिर है और पथिक चलायमान
यह बात मुझे तस्सली देती थी
बाद इसके
हाँ ख़ुशी इस बात की थी
की मेरे पड़ाव पर एक पथिक का
चंद दिनों के लिए ठहराव था

पथिक हो तुम
तुझमे बदलाव को भाफने इल्म है
और बाद चंद दिनों के
तुमने खुद मुझमें बदलाव देखा था
तुम्हारे लिए मुझ पड़ाव पर के
सारे फूल सुगंध विहीन हो गए थे
सारे दरख्ते छाहँ विहीन हो गए थे
सारे पक्षी सुर विहीन हो गए थे
निर्मल जल अब पीने लायक नहीं था
बूढ़े दरख़्तों के फल सड़ने लगे थे
इतने बदलाव महशूस करने के बाद
तुमने मुझ पड़ाव का त्याग कर
और कदम अगले पड़ाव के लिए बढ़ा दिया

पथिक हो तुम
तुझमे पड़ाव के दर्द को महशूस करने की आदत नहीं
पड़ाव का दर्द तुम्हारे जीवन के गति को रोक देगा
और तुम हमेशा "कुछ नया" का अनुभव नहीं कर पाओगी

पथिक हो तुम
मैं तुम्हारे अगले पड़ाव को पहचानता हूँ
आत्मविश्वास के साथ यह नहीं कह सकता
की उसको अच्छी तरह से जानता हूँ
हाँ मगर वह पड़ाव तुम्हें अभी आनंद जरूर देगा
निश्चित ही तुम "कुछ नया" का अनुभव कर पाओगी
मुझे पता है पथिक स्वभावबस चलायमान होता है
जिस दिन मेरे से अगले पड़ाव पर तुमको
मुझ जैसा पड़ाव का ही अनुभव होने लगेगा
तुम्हारे कदम फिर से उसके अगले पड़ाव की ओर चल पड़ेंगे
तुम्हारे ज़िंदगी का रास्ता बहुत लम्बा है
और इसमें ढेर सारे पड़ाव भी आएंगे
तुम स्वभावबस एक के बाद एक पड़ाव को
पीछे छोड़ते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ते जाओगी

हाँ! वास्तव में एक पथिक हो तुम 

Friday 19 May 2017

खूब हुआ बकवास

कि शूली पर यहाँ झूलते हैं माई के लाल
औ" खादी में हैं छुपे एक से एक दलाल

कि एक से एक दलाल करते हैं ता ता थैया
जहाँ भी देखो हैं इन्हीं के बाप या तो भैया

कि बाप हो या भैया हैं पकडे सबके ये रोटी
कहते कि चाहिये रोटी तो देना होगा बोटी

कि देना होगा बोटी नहीं तो ना गलेगी दाल
तेरे लिए तो है यहाँ अब सूखा और अकाल

कि सूखा और अकाल ग़ज़ब है इनकी माया
जनता भी लगी सोचने क्यूँ इससे भरमाया

कि क्यूँ इससे भरमाया अब नहीं सुनेंगे इसकी
चाहे बन जाये सरकार यहाँ अब जिसकी तिसकी

कि जिसकी तिसकी झोली में भी भरा हुआ है सांप
अपनी जनता सोचकर इस पर जाती है अब काँप

कहत कवि धरम हुआ खूब विकाश पर हास-परिहास
सब चलें अब अपने काम पर कि खूब हुआ बकवास

Thursday 18 May 2017

होंठ भी सिला बैठे

ज़िक्र-ए-यार पर फिर से हम भी हाँ में हाँ मिला बैठे
कि तेरे हरेक शिकवा को हम फिर से यूँ ही भुला बैठे

मेरे ख़्वाब से जो ऊँची है वो तेरे पैरों के तले भी नहीं
कि हम भी क्या सोचकर ये ज़मीं-आसमाँ मिला बैठे

अतीत में गए तो फिर हम वर्तमान में आ ही न सके
कि खुद को हम अपने ही आखों के पानी से जला बैठे

"धरम" हमने ज़िंदगी से इस तरह किनारा कर लिया
कि खुद ही अपनी जुबां काटी औ" होंठ भी सिला बैठे

Sunday 14 May 2017

अब माला लगे हैं जपने

निकले जो लुटिया डूबने को उनसे कैसे हो सत्कर्म
की पीटते हैं ढोल अपने नाम का करके सारे कुकर्म

कर के सारे कुकर्म भरी भीड़ में सब से आँख लड़ाये
लिए हैं स्वप्न मन में की जनता को भी खूब ये भाये

की जनता को भी खूब भाये सब उलटी सीधी इसकी
लगे हैं लोग कहने की क्या खूब पीते हैं ये व्हिस्की

उतरा नशा जब आशव का करने लगे सबको प्रणाम
अनायाश ही उनके मुख से भी फूट गया जय श्री राम

फूट गया जय श्री राम की अब लगे हैं माथा वो टेकने
उतारकर सर से टोपी "धरम" अब माला लगे हैं जपने 

Thursday 4 May 2017

किशोरावस्था में घुड़कना

तुमने थोड़ा सा वक़्त दिया था मुझे
खुद में पनपने को
मैं तब बस उस रिश्ते में
घुड़कना सीख ही रहा था
कभी तेरा सहारा मिलता
तो उसे थामकर
छन भर खड़ा हो पाता था
हाँ! मगर फिर गिरने के बाद
कराह नहीं निकलती थी दिल दुखता नहीं था
कुछ उम्मीद थी मन में

थोड़ा वक़्त और गुज़रा था तेरे साथ
मैं बिना सहारे
थोड़ी थरथराहट के साथ खड़ा हो पाता था
बाद उसके तेरे सहारे
मेरे पैर ज़मीं पर टिकने लगे थे

मुझे अब भी याद है
मैंने बिना चलने का अभ्यास किए
तेरे साथ सीधा दौड़ा ही गया था
मगर उस दौड़ के बाद
बुनियाद हिलने लगी थी

ये कहाँ पता था
की दौड़ने के पहले चलना आना चाहिए
वो पहली दौड़ ही आखिरी दौड़ हो गई
औ" बाद उसके
उस रिश्ते में घुड़कना भी मुमकिन न रहा

किशोरावस्था में किसी का घुड़कना
खड़ा होना और फिर एकदम से दौड़ पड़ना
बाल्यावस्था में घुड़कने खड़ा होने और फिर
एकदम से दौड़ने पड़ने से बिलकुल अलग होता है


Monday 1 May 2017

आधा दर्द पूरी ज़िंदगी

आओ
अपने-अपने जज़्बातों को
अब आधा-आधा बाँट लेते हैं
आधा तुम मुझमें जीना
आधा मैं तुझमें जीयूँगा

मैं अपनी संवेदनाओं को तुझमें देखूंगा
और तुम मुझमें देखना

आधे मेरे सपने तुम जीना
आधा तुम्हारा मैं जी लूंगा

फिर जीवन के चक्र में
बाकी का आधा तुम मुझको दे देना
और अपना पुराना आधा मुझसे ले लेना

यही क्रम मैं भी तुम्हारे लिए दुहराऊंगा
दोनों की पूरी ज़िंदगी मुकम्मल होगी
और इस तरह हम दोनों
एक दूसरे को पूरी तरह जी लेंगे

न मैं कभी अस्तित्व विहीन होऊँगा
औ" न तुम होगी

हाँ! मगर यह एक मिशाल होगा
आधा दर्द और पूरी ज़िंदगी का