1.
अपने रूह का जनाज़ा खुद अपने ही कंधे पर ढोता हूँ
मैं ऐसा सख़्श हूँ "धरम" खुद ही से खुद को खोता हूँ
2.
जब भी वक़्त को पकड़ा "धरम" ज़िंदगी रेत की तरह हाथ से निकल गई
किस्मत थोड़ी ही सी फिसली हाँ! ज़िंदगी उसके साथ और भी फिसल गई
3.
अपने अंदर के किस आग को जलने दूँ 'धरम' किस आग को बुझाऊँ
ऐ! वक़्त ये तेरी कैसी मार है कि मैं खुद अपने को भी न समझा पाऊँ
4.
वो तारा अभी पूरा टूटा नहीं 'धरम' तुझे खुद उसे तोड़ना होगा
कि अभी तो बस थोड़ा ही चले हो तुझे अभी और चलना होगा
5.
कि एक प्यास अभी और बुझानी है एक प्यास अभी और लगानी है
ज़िंदगी एक ऐसा दरिया है "धरम" जिसकी हर वक़्त यही कहानी है
अपने रूह का जनाज़ा खुद अपने ही कंधे पर ढोता हूँ
मैं ऐसा सख़्श हूँ "धरम" खुद ही से खुद को खोता हूँ
2.
जब भी वक़्त को पकड़ा "धरम" ज़िंदगी रेत की तरह हाथ से निकल गई
किस्मत थोड़ी ही सी फिसली हाँ! ज़िंदगी उसके साथ और भी फिसल गई
3.
अपने अंदर के किस आग को जलने दूँ 'धरम' किस आग को बुझाऊँ
ऐ! वक़्त ये तेरी कैसी मार है कि मैं खुद अपने को भी न समझा पाऊँ
4.
वो तारा अभी पूरा टूटा नहीं 'धरम' तुझे खुद उसे तोड़ना होगा
कि अभी तो बस थोड़ा ही चले हो तुझे अभी और चलना होगा
5.
कि एक प्यास अभी और बुझानी है एक प्यास अभी और लगानी है
ज़िंदगी एक ऐसा दरिया है "धरम" जिसकी हर वक़्त यही कहानी है