Monday 30 January 2023

कभी न फिर दाख़िला होगा

ख़्वाब में सिर्फ़ मक़्तल ख़याल में कर्बला होगा    
ऐ! मौला कैसे फिर  इंसानियत का भला होगा 

पहले भी जिनका ऐसा एक मिज़ाज रहा होगा 
उन्हौंने हाथ अपना कुछ कम नहीं मला होगा 

वह उजाला  सिर्फ़ चराग़-ए-रौशनी की न थी  
उस वक़्त दिल भी कुछ कम नहीं जला होगा

कैसी ख़ामोशी थी सन्नाटा न था एक शोर था
ग़ुर्बत में होंठ भी  कुछ कम नहीं सिला होगा 
     
हर गुस्ताख़ी के बाद  ख़ुद से फिर वही वादा  
मुस्तक़बिल में फिर कभी न कोई गिला होगा

हाथ बढ़ाया दिल मिलाया कुछ ज़ुबान भी दी 
टूटने का अब फिर वहाँ एक सिलसिला होगा 

'धरम' साँसों का कलेजे से क्यूँ ऐसा वादा कि 
ख़ुद का ख़ुद में कभी न फिर दाख़िला होगा 

Friday 20 January 2023

जिस्म से हमेशा मरदूद रहा

कभी हमशक्ल बनकर कभी साया बनकर मौजूद रहा 
ख़ुद अपने उरूज-ओ-ज़वाल में कब अपना वुजूद रहा

कि क्यूँ कोई भी साँस  सीने में कभी पूरी न उतर सकी  
वक़्त को कलेजे से न लिपटने का हमेशा एक ज़ूद रहा  

कि इस दिल की बे-क़रारी को चैन कभी आए भी कैसे  
जब ये दिल ख़ुद अपने भी जिस्म से हमेशा मरदूद रहा

आईने ने शक्ल पहचाना भी औ" नज़र भी मिलाए रखा     
मगर दरमियाँ आईने और चेहरे के गुफ़्तुगू मस्दूद रहा  

न तो कभी दिखाई दिया न ही किसी को महसूस हुआ  
फिर भी एक मुंसिफ़ की हुक्मरानी में  वो मशहूद रहा  
 
वो शख़्स कौन था जिसने अपनी साँसें मेरे कलेजे में दी   
औ" जिस्म में उतरकर भी 'धरम' ता-उम्र मफ़क़ूद रहा


वुजूद - अस्तित्व
ज़ूद - जल्दी
मरदूद - बहिष्कृत
मस्दूद - रुका हुआ
मशहूद - जो उपस्थित किया गया हो
मफ़क़ूद - अज्ञात

Friday 6 January 2023

कुछ यूँ साँसों ने भी बोल दिया

तख़्त ने फ़रियादी के लहू को जब फ़िज़ा में घोल दिया
ज़माने ने उसके लहू को भी  पानी के मोल-तोल दिया  

कब वफ़ा की क़सम में बंधे एक चराग़ की लौ में जले  
कब तिरे दिल ने  मेरे दिल को  बराबर का मोल दिया 

वफ़ा-ए-इश्क़ को आँखों में उतारा सीने में दफ़्न किया  
फिर क्यूँ ज़माने के सामने  अपना कलेजा  खोल दिया   

वो वफ़ा की बात हुई एक चराग़-ए-वफ़ा जलाया गया  
फिर हर वफ़ा की राह में वीरान कोई एक जोल दिया

जब भी ज़बाँ ख़ामोश रही  तब चेहरा बस जलता रहा     
कुछ तो नज़रों ने कहा कुछ यूँ साँसों ने भी बोल दिया 
 
कि "धरम" तेरी बातें तेरी नज़र तिरा चेहरा तिरा जादू 
ख़ुदा ने पूरी काइनात को ये भरम ख़ूब अनमोल दिया