Saturday 25 May 2013

"चंद शेर"

1.
आओ अब कहीं दूर चलें
बाँहों में बाहें डालें झूमें, इठलायें 
भर किलकारी खूब हसें 
सारे ग़म को झुठलायें 
आओ अब ...

2.

मुक्कमल है तुम फिर याद भी आओ 
मगर वो सिर्फ अजनबी अहसास ही होगा 
बेसबब तुम्हारे रूठने का सबब "धरम"
मेरे लिए तो सिर्फ बकवास ही होगा

3.

तन्हाई से डर नहीं लगता सूनापन काटता भी नहीं
दर्द खुद बन गया है दवा अब तो दिल दुखता भी नहीं

4.

सुलगता जिस्म था आखों में लहू उतरा था 
सीने को चीरकर दिल बाहर निकला था

5.

उस वीरां सन्नाटे को दिल से लगाया 
आहिस्ता आहिस्ता धड़कन ठहराया 
बहार की बू न आए उससे 
ये सोचकर दिल फिर घबराया ...

6.

उजड़े हुए खंडहर को महल बनाते हैं 
हम बीते हुए कल को वापस बुलाते हैं 
पुरानी बीती बातों को समेटकर अब 
हम फिर से अपना युगल बनाते हैं 

7.

दामन छूट भी जाये तो भी चराग-ए-इश्क जलाए रखना 
गर मन का दिया बुझ भी जाये तो दिल को जलाए रखना 

8.

समंदर के जैसा ही तेरा प्यार भी बेसहारा निकला 
देखने में तो दरिया था मगर चखा तो खारा निकला


Saturday 4 May 2013

मिट्टी


सुबह का नाश्ता लिया भी नहीं
काम का वक़्त हो चला था
कुदाल कंधे पर लेकर वह
खेत की ओर चल पड़ा

मिट्टी कोड़ना कोई आसन काम नहीं
हर एक प्रहार पर वो उतना कटता था
जितनी की मिट्टी नहीं कटती थी
उस मिट्टी से उसका माँ का रिश्ता था

वो जानता था माँ अपने बच्चे को
कोई भी कीमत अदा कर के पालती है
हम सब इस मिट्टी की संतान तो हैं
और वो आंसू पोछ लेता था

वक़्त हो चला था मिट्टी को पानी पिलाने का
मिट्टी भींगी है सेंधी खुसबू बिखेर रही है
वह मिट्टी में पूरा यूँ सना हुआ था
जैसे मानो माँ की आँचल से लिपटा हो

अब बारी थी बीज छिडकने की
बीज भी तो मिट्टी के अंक से ही निकला था
फसल यूँ लहलहाया जैसे कह रहा हो
भला माँ भी कभी अपने बच्चे से नाराज़ रहती है

अब वक़्त है फसल काटने का
मिट्टी खुश है,अपने बच्चे का आहार देखकर
वह खुश भी है और थोडा सिसक भी रहा है
इस फसल के बाद उसे ही तो
फिर से चीरना है मिट्टी के सीने को