Wednesday 28 May 2014

ऐ साक़ी !

चला जो तीर-ए-नज़र हर एक दिल घायल हुआ
उसके महफ़िल का हर एक दीवाना कायल हुआ

इस बाजार-ए-हुस्न में हर कोई है दिलफ़रोश
बेनकाब साक़ी और मय अब कहाँ किसे है होश

साक़ी का तक्खल्लुस भी यहाँ होता है दिलसाज़
गर वो हो मेहरबाँ तो कैसा होगा वो दिलजू अंदाज़

उसके आने से ये महफ़िल हो गया दीवान-ए-खास
मेरा दर्द-ए-दिल "धरम" अब हो गया तह-ए-ख़ाक 

Saturday 17 May 2014

सियासत का खेल

सियासत का खेल कितना नंगा था
मुद्दा वज़ीरों का सिर्फ दंगा था

जो बन जाएगी दूसरी सरकार
हर ओर होगी क़त्ल औ' हाहाकार

एक के बाद एक सब लग गए तुष्टिकरण में
मुद्दा भ्रष्टाचार औ' मानवता उड़ गया गगन में

लगे बस ठोकने ताल कि हम ही हैं तुम्हारे रक्षक
बाकि सब तो हैं राक्षस औ' तुम्हारे भक्षक

डराकर मानव को दानव ही तो जीता है
कोई मानव कहाँ किसी का लहू पीता है

खुद देकर ज़ख्म आरोप किसी और सर मढ़ दिए
जो न माने बात तो खुलेआम सीने पर चढ़ गए

डराए धमकाए और क़त्ल भी करवाये
और रखे हैं अरमान कि लोग उन्हें ही अपनाये

लिया धरा पर जन्म तो जीवन पर अधिकार सिद्ध है
एक बार खुद भी तो परखें कि कौन गरुड़ कौन गिद्ध है

मानव से मानव को तोडना एक राक्षशी प्रवृत्ति है
मिलाकर जो चल सके सबको उसी की राष्ट्र में भक्ति है

जय हिन्द जय भारत

Wednesday 14 May 2014

अखंड हिन्दुस्तान

जय बोलो श्री राम की जय बोलो गुरु परशुराम की
जय बोलो बजरंग की जय बोलो अब संघ की

जय बोलो उपनिषद् की जय बोलो अब परिषद् की
जय बोलो श्री श्याम की जय बोलो अब आवाम की

जय बोलो माँ दुर्गा की जय बोलो माँ काली की
जय बोलो सत्कर्म की जय बोलो सनातन धर्म की

जय बोलो रणचंडी की जय बोलो माँ भारती अखंडी की
जय बोलो राष्ट्र-गाण की जय बोलो अखंड हिंदुस्तान की   

Friday 2 May 2014

तुम और रकीब

तुम आए जीने का तहजीब आ गया
मैं खुद भी अपने करीब आ गया

कब धड़का था दिल मेरा यूँ इस तरह
कि हर धड़कन पर मैं तेरे करीब आ गया

जो मैंने बढ़ाया हाथ तो तुम गले भी मिले
औ' ज़माने की खुशियाँ मेरे नसीब आ गया

तेरे इश्क़ का दरिया था मैं उतरा औ' डूबा भी
महज़ चंद डुबकियों में ही एक ताकीद आ गया

हर कोई मुकद्दर का सिकंदर कहाँ होता "धरम"
अगली मुलाक़ात में ही साथ उसके रकीब आ गया