Thursday 29 December 2011

हाय रे सरकार...

अर्पित बलि पर है मानव का सुविचार 
फिर क्यूँ ख़त्म हो यह भ्रष्टाचार
चलते रहने दो यू ही व्यभिचार
मत करो इस पर पुनः विचार
हाय रे सरकार,   हाय रे सरकार...

मंत्री ही करे जनता पर अत्याचार
फिर करे संसद में भी विचार
और कहे बंद करो यह भ्रष्टाचार
हम सब लड़ने को हैं तैयार
हाय रे सरकार,   हाय रे सरकार...

मंत्री ही रखवाते हैं अबैध हथियार
करवाते हैं मानव जीवन का व्यापार
कभी जाने जाती हैं, कभी मानवता होती है शर्मशार
और फिर कहते हैं, उनके हैं अद्भुत विचार
हाय रे सरकार,   हाय रे सरकार...

Wednesday 14 December 2011

वह अब भी जवां था...

अपनी ही सूरत देखकर हैरां हो गया
आइना देखा और फिर परेशां हो गया
चेहरे पर पड़ी झुर्रियां भी ढीली हो गई
लब्ज़ भी कुछ लडखडा सा गया
एक आह! सी निकली जुबां से
हाय! क्या उसका चेहरा हो गया


वह चेहरा जिसे कभी
ओस की बूंद पिलाता था
चन्दन का लेप लगता था
कभी गुलाब जल में रुई भिंगो कर रगड़ता था
तो कभी मर्द पार्लर में संजोता था
और न जाने क्या क्या करता था

फिर एहसास हुआ उसे अपने बुढ़ापे का
मगर जब उसने अपने दिल से पूछा
तो उत्तर कुछ और ही पाया
फिर वह शरमाया, घबराया, बलखाया
और फिर बीते लम्हों को
पुनः जिंदा करने के लिए चल पड़ा
उन्हीं गलिओं में, उन्हीं सड़कों पर ........