Monday 3 December 2018

चंद शेर

1.
मेरे  सब्र को "धरम" अब और क्या ही आज़माना
कि गुज़रते गुज़रते अब तो गुज़र गया हर ज़माना

2.
वहीं से  ज़ख्म मिला "धरम" जहाँ से  ज़ख्म भरना था
कि बाद उत्तर मिलने के अब उपयुक्त प्रश्न करना था

3.
चैन की  एक  नींद  "धरम" मौत के  पहले भी आनी चाहिए
मौत के पहले भी एक रात कब्र-ए-मुक़र्रर में बितानी चाहिए

4.
न कोई यार है मेरा न तो किसी नज़र को इंतज़ार है मेरा
ख़ुद अपने आप से भी तो 'धरम' नहीं कोई क़रार है मेरा

5.
बज़्म-ए-उल्फ़त की रौनक-ए-महफ़िल "धरम" एक उसके जाने से घटती नहीं
वो एक बार गुजरी तो क्या गुजरी मुझ पे की अब तो  कोई भी याद मिटती नहीं

6.
पीकर समंदर को  नशा सुबह  तक चारो  आखों में बनाए रखा
एक ही आग से लिपटकर "धरम" दोनों ज़िस्मों को जलाए रखा

7.
बात को जब आगे निकलनी थी तो हर दीवार टूटी  कई रास्ता बना
बुनियाद मोहब्बत की थी "धरम" मगर उसपर ये कैसा वास्ता बना

8.
इस एक सख़्श को "धरम" अब और कितना आजमाना है तुम्हें
कि क्या मोहब्बत को इसी के साथ अंजाम तक ले जाना है तुम्हें

9.
सासें बोलती रहीं "धरम" सिहरन दोनों ज़िस्मों को ज़िन्दा करता रहा
बाहों से बाहें लिपटी रहीं घूँट इश्क़ का हलक़ में  चढ़ता उतरता रहा