Monday 26 September 2022

कि क़र्ज़ बढ़ने लगा

चाँद ख़ुद अब अपनी चाँदनी को रास्ता नहीं देता 
मोहब्बत में अब कोई किसी को वास्ता नहीं देता 

टूटे हुए लम्हों का समंदर  दिल से लपेटकर रखा   
एक भी लम्हा दिल में उफान आहिस्ता नहीं देता  

क्यूँ ख़ुद से भी यदि रु-ब-रु होता हूँ तो वो विसाल      
एक मुस्तक़बिल देता है  कोई गुज़िश्ता नहीं देता

हर वाक़ि'आ  मोहब्बत का  ज़ुबाँ पर है तो मगर  
वो बयान तो देता है हाँ! कभी नविश्ता नहीं देता

तेरा हाथ थामा तो ऐसा लगा कि क़र्ज़ बढ़ने लगा
ये एहसास 'धरम' क्यूँ कोई और रिश्ता नहीं देता

Thursday 8 September 2022

लहू कभी उबलता नहीं

रास्ते बदलते हैं  मगर वाक़ि'आ बदलता नहीं 
कि क्यूँ बुलंदी से फ़ासला कभी बदलता नहीं 

ठोकर मारी गले लगाया  कोई वास्ता न रखा    
वो एक ऐसा पत्थर है जो कभी पिघलता नहीं 

शम'-ए-महफ़िल उसके सामने लाया ही नहीं  
वो ज़हर पीता तो है मगर कभी उगलता नहीं 

सहरा रात तन्हाई मोहब्बत कई ज़माने देखे  
इश्क़ ऐसा समंदर है जो कभी मचलता नहीं 

सुबह दोपहर शाम रात बस जलता रहता है 
लहू में ये कैसी ठंढक है कभी उबलता नहीं

न तो चलने सलीक़ा  न ही मंज़िल का 'उबूर      
ठोकर भी खाता है और कभी संभलता नहीं 

यार की बातें प्यार की बातें तकरार की बातें 
कैसा दिल है की "धरम" कभी बहलता नहीं