Monday 16 September 2019

तब कहीँ जाकर सही फ़ैसला होता है

जब कभी कल और आज में एक उम्र का फ़ासला होता है
तब हर वक़्त तन्हाई में भी एक एहसास-ए-क़ाफ़िला होता है

जब चमन से ज़ख्म निकलता है तो रुह काला पड़ जाता है
"औ" आँखों में बाद एक ज़लज़ले के दूसरा ज़लज़ला होता है

तीरगी के फ़िज़ा में उम्मीद-ए-रौशनी यूँ ही नहीं मिलती
चिराग़-ए-दिल जलाए रखने का एक अलग हौसला होता है

हर ज़िस्म यूँ ही ग़म को अपने अंदर पनाह नहीं दे सकता
ग़म को सुकूँ से सुलाने का एक अलग ही मरहला होता है

एक ही ज़िस्म में दिल-औ-दिमाग दोनों को बखूबी संभालना
ज़िस्म में दिल या दिमाग किसी एक का अलग घोंसला होता है

जब भी दरम्यां दो दिलों के "धरम" कोई भी मसअला होता है
चारों आँखें बंद होती हैं तब कहीँ जाकर सही फ़ैसला होता है