Thursday 28 November 2013

अठखेलियां करती ज़िंदगी

तुम्हारी वो मौजों भरी ज़िंदगी
मानो बीच समंदर में
जैसे लहरें अठखेलियां करती
उछलती कूदती समंदर में खो जाती

फिर दूर कहीं और किसी दूसरे तूफां के साथ 
ठिठोली करती हज़ारों रंग में जीवन के सपने बुनती 
ऐसा मानो कि इंद्रधनुष का रंग भी फींका हो 
और मौजों के ढलने पर तुम अकेले निकल जाती 

तुम्हें समंदर के गहराई का अंदाजा हो गया है 
अब तुम ज़िंदगी में किनारा ढूंढने लगे हो 
तुम तो हमेशा सफ़र में अकेले चला करते थे 
मगर अब तुम सहारा ढूंढने लगे हो 

ज़िंदगी के हर रिश्ते को जलाकर तापा है मैंने  
बुझती लौ को अपने साँसों से हवा दी है
मेरी साँसें बुझती यादों के साथ ठंढी हो गई है  
अब वो रिश्ता एक दफनाया जनाज़ा सा है 

बगैर तेरे हर रात 
तन्हाई में मैं रिश्ते को जलाता था 
रिश्ता जलता था और फिर कमरा 
तुम्हारी यादों से रौशन हो जाता था  
मगर वो यादें कब की बुझ चुकी हैं  

Sunday 24 November 2013

डायरी लेखन

डायरी लिखने की प्रथा बहुत पुरानी है.  लेखक डायरी में अपनी दिनचर्या और आत्मकथा लिखते हैं. अपनी डायरी, अपना व्यक्तित्व और अपना ही आकलन। डायरी लिखने से लेखक का मन हल्का हो जाता है और उसे शांति मिलती है.  डायरी लिखने से स्मरण शक्ति बढती है और लेखन क्षमता में भी दक्षता आती है. स्मरण शक्ति का तात्पर्य यह है की जिस घटना या दृश्य के बारे में आप लिखना चाहते हैं वह आपको कितना याद है ? यदि पूरा याद हो तो फिर उस घटना या दृश्य के बारे में आप सब कुछ लिख सकते हैं और अगर याद नहीं हो तो फिर डायरी में जो भी लिखेंगे वह पूर्ण सत्य नहीं होगा। लेखक किसी भी दृश्य या घटना को कितने बारीकी से देखता है और उसका मूल्यांकन किस तरह करता है यह उसके डायरी लेखन से परिलक्षित होता है.  डायरी में लेखक अपनी जीवन यात्रा को कलमबद्ध कर सुरक्षित रख सकता है. अपने जीवन के कडवाहटों तथा मधुर संबंधों को अपने ही शब्दों में पिरोकर लेखक हरेक सम्बन्ध को जीवित रख सकता है. अपनी संवेदना व्यक्त करने का एक बहुत ही अच्छा माध्यम है डायरी। लेखक डायरी में अपनी गलतियों के बारे में भी लिखता है. वह  क्षण हमेशा के लिए कैद हो जाता है जब मनुष्य खुद गलती करता है और उसे उस गलती का एहसास भी होता है जो की वह डायरी के माध्यम से जीवित रखना चाहता है. बहुत लोग गलती के पश्चाताप के बारे में भी लिखते हैं। गलती मानकर उसका उचित पश्चाताप भी लेखक के जीवन दर्शन के बारे में बताता है. डायरी में लिखे अपनी गलतियों को साक्षी मानकर यह प्रतिज्ञां करता है की उन गलतियों की पुनरावृति नहीं होगी। लेखक द्वारा लिखे गए डायरी के पढने से उसके व्यक्तित्व और जीवन दर्शन के बारे में पता चलता है. लेखक का मूल्याङ्कन पाठक के बौद्धिक क्षमता पर भी निर्भर करता है. एक डायरी यदि अलग-अलग विचारधारा के पाठक पढेंगे तो वो लेखक का मूल्याङ्कन भी एक जैसा नहीं कर पायेंगें। 
डायरी लेखक की निजी संपत्ति होती है. डायरी यदि सार्वजानिक हो जाए तो लेखक की कमजोरी बन सकती है. खुद अपनी गलतियों को दूसरों के सामने बताना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के जैसा है. यदि लेखक किसी संगीन घटना का प्रत्यक्ष द्रष्टा हो और उसका उल्लेख यदि डायरी में हो तो वह उसके लिए पीड़ादायक हो सकता है. पूर्वजों की डायरी पढने से परिवार तथा समाज में द्वेष की भावना भी उत्पन्न हो सकती है. एक गलत चीज़ को एक डायरी के माध्यम से यदि कोई बुजुर्ग सही ठहराते हैं  तो उसकी अगली पीढ़ी उस चीज़ को सही मानकर फिर से वही गलती कर सकती है. एक पक्षपातपूर्ण लिखा हुआ डायरी उतना ही विध्वंशक हो सकता है जितना की पक्षपातपूर्ण लिखा हुआ इतिहास।   

Monday 18 November 2013

दो गज़ जमीं

ये तो बस ख़ुदा की ही रहमनुमाई है
कि दो गज़ जमीं मेरे हिस्से में भी आई है
वरना हमने तो जिस-जिस को चाहा
आज वो हर एक शख्स पराई है

जो आग लगी थी मेरे दिल में कभी
अब तक कहाँ किसी ने बुझाई है
मोहब्बत बिकने लगी है पैसों पर
हद-ए-निगाह तक अब सिर्फ बेवफाई है

फैला था दामन मेरे प्यार का कभी
अब तो उसमे सिर्फ रुस्वाई है
जो झांकता हूँ यूँ किसी के दिल में
देखता हूँ "धरम"अब तो हर कोई हरज़ाई है


  

Thursday 7 November 2013

तेरी महफ़िल

अपनी महफ़िल में मुझे बुलाओ तेरी रुसवाई कम हो जायेगी
जो तुम मुझसे करो गुफ़तगू  तो तेरी तन्हाई कम हो जायेगी

तेरी महफ़िल में ज़माने भर का ग़म था तुम्हारा अपना भी ग़म था
मगर जो बरपा रही थी तुम औरों पर बताओ वो कैसा सितम था

यूँ तो तुम्हारे कई चाहने वाले होंगे जो सराहेंगे भी निबाहेंगे भी
गर जो हो वफ़ा की बातें तो तुझे लोग झुठलाएंगे भी भुलायेंगे भी  

दूर आसमां में कभी अमावस में एक रात महताब उतरा था
बाद मेरे ज़हन में कितना दर्द उतरा था कैसा ख्वाब उतरा था

जो तुझको देखूं तो हुस्न परेशां दीखता है इश्क़ बे-निशां दीखता है
तेरी महफ़िल में "धरम" न मैं दीखता हूँ न मेरा नक़्शे-पां दीखता है

Wednesday 6 November 2013

चलो इश्क़ लड़ाएं सनम

चलो इश्क़ लड़ाएं सनम
दिल को दिल से मिलाएं सनम

कर के झूठे वादे
एक-दूजे को झुठलाएं सनम

हँस-हँस कर एक-दूजे को
थप्पड़ लगाएं सनम

निगाह तो रहे एक-दूजे पर
निशाने कहीं और लगाएं सनम

जो मिलें तो खूब मजे उड़ायें
फिर एक-दूजे का मजाक उड़ायें सनम

जीवनभर साथ निभाने का
एक-दूजे की झूठी कस्में खाएं सनम  

प्यार आज भी है और कल भी रहेगा
इस बात पर एक-दूजे का गला दबाएँ सनम

चलो इश्क़ लड़ाएं सनम  ....

Monday 4 November 2013

चंद शेर

1
तुम्हारे कितने यार हैं
हर जगह तुम्हारे ही अशआर हैं
हाँ बताओ तुम्हारे कितने यार हैं !

2
चराग मेरे इश्क़ का आधा जला हुआ आधा बुझा हुआ
मुझको थोड़ा उजाला कर गया थोड़ा अँधेरा कर गया

3
मत पूछ मेरे मेहबूब हाल-ए-दिल मुझसे
कहीं तेरी दास्ताँ ही न बयां हो जाए

4
लुट कर तेरे इश्क़ में मुझे चैन की नींद आई
वाह रे हरज़ाई वाह रे तेरी बेवफाई

Sunday 3 November 2013

रिश्ता यारी का

मारी फूँक
चले रिश्ते की जान पढ़ने
बिलख उठा मन
और लगा बिगड़ने
अपने ह्रदय का स्पंदन

कौन रिश्ता ! कैसा रिश्ता !
कितना गहरा ! कितना सुन्दर !
बनकर व्यापारी
लगे बस तौलने अपनी तुला पर
एक ओर तुला पर चढ़ बैठी
अपनी बुद्दि अपना विवेक

मगर
रिश्ता पकड़ में नहीं आ रहा है
तुला का दूसरा सिरा
अब भी झूल रहा बिना रिश्ते के

बढाकर हाथ जो चाहा पकड़ना रिश्ता
फिसल कर दूर जा गिरा वो अपना रिश्ता
चिमटे के सहारे जो पकड़ा रिश्ता
उभरकर दाग आया और बड़ा कराहा रिश्ता

जो रखा तुला पर तो बड़ा घबराया रिश्ता
और लगा बुदबुदाने डंडी तुला का
अरे मत तौल उसे वो तो रिश्ता है
जिससे हो जाये वही तो फरिश्ता है

जम गई है धूल रिश्ते पर
जो झाड़ा धूल तो
साथ में ही झड़ गया रिश्ते का वो अपनापन
कर रहा अफसोश क्यूँ किया ऐसा अकिंचन

रिश्ते को दिया था नाम यारी का
लगा था झूमने वह बिना खुमारी का
मगर फिर हुआ ऐसा क्यूँ
लगे तुम खोजने फिर से नाम रिश्ते का

जिस रिश्ते का नाम यारी है
उसमे भला कहाँ कोई बीमारी है
बेसबब न ढूँढ कोई और नाम इसका
ये यारी है और यही तो ईमानदारी है