तुम्हारी वो मौजों भरी ज़िंदगी
मानो बीच समंदर में
जैसे लहरें अठखेलियां करती
उछलती कूदती समंदर में खो जाती
मानो बीच समंदर में
जैसे लहरें अठखेलियां करती
उछलती कूदती समंदर में खो जाती
फिर दूर कहीं और किसी दूसरे तूफां के साथ
ठिठोली करती हज़ारों रंग में जीवन के सपने बुनती
ऐसा मानो कि इंद्रधनुष का रंग भी फींका हो
और मौजों के ढलने पर तुम अकेले निकल जाती
तुम्हें समंदर के गहराई का अंदाजा हो गया है
अब तुम ज़िंदगी में किनारा ढूंढने लगे हो
तुम तो हमेशा सफ़र में अकेले चला करते थे
मगर अब तुम सहारा ढूंढने लगे हो
ज़िंदगी के हर रिश्ते को जलाकर तापा है मैंने
बुझती लौ को अपने साँसों से हवा दी है
मेरी साँसें बुझती यादों के साथ ठंढी हो गई है
अब वो रिश्ता एक दफनाया जनाज़ा सा है
बगैर तेरे हर रात
तन्हाई में मैं रिश्ते को जलाता था
रिश्ता जलता था और फिर कमरा
तुम्हारी यादों से रौशन हो जाता था
मगर वो यादें कब की बुझ चुकी हैं