करवाके क़त्ल ख़ुदकुशी का नाम देते हो
तुम तो जुर्म को भी नया आयाम देते हो
हर रोज नए गिरह बांधते हो खोलते भी हो
घोलकर ज़हर इंसानियत का नाम देते हो
हम तो ज़माने से जमीं पर रहने के शौक़ीन हैं
कुछ वक़्त के लिए क्यों आसमाँ की ऊडॉं देते हो
हमने सोचा तेरे आने से मुकद्दर जाग जायेगा
तुमतो आकर सोये मुकद्दर को भी मार देते हो
हवा देकर आपसी रंजिश को तुम "धरम"
हमें भीड़ में भी डर तन्हाई का दिखा देते हो