एक बार फिर क्यूँ मातम सा छा गया
मेरे लहू में फिर क्यूँ ज़हर सा घुल गया
तन्हाई का दर्द मुझे फिर से लूटने लगा
जो वो फिर से याद आये तो मैं टूटने लगा
दिल मेरा एक सिकन्दर था आज रोता हुआ दिखा
आँसूं की बूंद में समंदर आज सिमटता हुआ दिखा
गुजरे वक़्त का हिसाब वो फिर से मांगने लगे
लेकर मेरी तस्वीर वो सर-ए-आम चूमने लगे
वो ख्याल-ए-मोहब्बत और शहंशाह-ए-हिन्द
बनवाकर ताजमहल "धरम" कभी भुला न सके
मेरे लहू में फिर क्यूँ ज़हर सा घुल गया
तन्हाई का दर्द मुझे फिर से लूटने लगा
जो वो फिर से याद आये तो मैं टूटने लगा
दिल मेरा एक सिकन्दर था आज रोता हुआ दिखा
आँसूं की बूंद में समंदर आज सिमटता हुआ दिखा
गुजरे वक़्त का हिसाब वो फिर से मांगने लगे
लेकर मेरी तस्वीर वो सर-ए-आम चूमने लगे
वो ख्याल-ए-मोहब्बत और शहंशाह-ए-हिन्द
बनवाकर ताजमहल "धरम" कभी भुला न सके