Wednesday 30 October 2013

ख्याल-ए-मोहब्बत

एक बार फिर क्यूँ मातम सा छा गया
मेरे लहू में फिर क्यूँ ज़हर सा घुल गया

तन्हाई का दर्द मुझे फिर से लूटने लगा
जो वो फिर से याद आये तो मैं टूटने लगा

दिल मेरा एक सिकन्दर था आज रोता हुआ दिखा
आँसूं की बूंद में समंदर आज सिमटता हुआ दिखा

गुजरे वक़्त का हिसाब वो फिर से मांगने लगे
लेकर मेरी तस्वीर वो सर-ए-आम चूमने लगे

वो ख्याल-ए-मोहब्बत और शहंशाह-ए-हिन्द
बनवाकर ताजमहल "धरम" कभी भुला न सके

Tuesday 8 October 2013

एक दिलदार भी था

पूरा समंदर पी गया मगर फिर भी प्यास न गई
कई सालों से तन्हा हूँ उसके आने की आश न गई

पहले भी मरासिम थे अब भी ताल्लुकात न गई
जो कभी चूमते थे आसमां अब भी वो ख़यालात न गई

बरसात का महीना और वो लुका-छिपी का खेल
मौसम तो बीत गया मगर वो  मुलाकात न गई

दौलत-ए-हुस्न भी था मखमली रुखसार भी था
करम-ए-यार भी था "धरम" मेरा एक दिलदार भी था