Saturday 15 June 2019

दिल मरोड़ना पड़ता है

हर बार ख़त मोहब्बत का लिखने से पहले कलम तोड़ना पड़ता है
दिल में कोई भी आरजू पैदा करने के लिए दिल मरोड़ना पड़ता है

कोई इश्क़ कब तक ज़िन्दा रहता है इसका कुछ भी अंदाज़ा नहीं 
मगर हाँ! ज़िन्दा इश्क़  को देखने के लिए  आँख फोड़ना पड़ता है 

कोई एक तहज़ीब दूसरे किसी तहज़ीब से यूँ ही नहीं जुड़ जाता है
कि दोनों के मिट्टी से मिट्टी औ" पानी से पानी को जोड़ना पड़ता है 

ऐ हुस्न-ए-बेपरवाह तुझसे बचकर  निकलना कुछ आसान तो नहीं 
लिए इसके हर दिल को हर बार  ख़ुद-ब-ख़ुद  सिकुड़ना पड़ता है

फ़ैसला ख़ुद अपने ही दिल का  ख़ुद को भी  यूँ ही मंज़ूर नहीं होता 
कि ख़ुद ही से ख़ुद को "धरम" कई बार तन्हाई में लड़ना पड़ता है 

Monday 3 June 2019

चंद शेर

1.
अब तो थक चुका हूँ "धरम" बुरा सुनते सुनते भला कहते कहते
अब तो कुछ भी असर नहीं होता इस तरह ज़माने में रहते रहते

2.
नग़मा अब कोई ज़ुबाँ पर आता नहीं किसी भी ज़ख्म पर अब दिल दुखाता नहीं
मौत से पहले मौत की बात "धरम" अब तो ग़ुबार उड़ाता नहीं दिल जलाता नहीं

3.
बाहर तन्हा चारदीवारी अंदर हिज़्र में लिपटे एक-एक जज़्बात
क्या कहें अब तो "धरम" ख़ुद से भी ख़ुद की होती नहीं है बात  

Saturday 1 June 2019

हर ओर ज़िस्म लहराता रहा

जो छलक कर जाम प्याले से ज़मीं पर गिरा तो वो सूखता रहा
कितने सारे हलक़ प्यासे थे मगर हर हलक़ सिर्फ तरसता रहा

ज़िंदगी रेत की  तरह थी  मुट्ठी से हर वक़्त  बस  सरकती रही
ज़मीं पर गिरी  धूल में मिली  वह  सिर्फ भर नज़र  देखता रहा

वो  इश्क़ मोहब्बत उल्फ़त  सब का  बज़्म में  एक ही रंग रहा
वो सब  बस कदम ही चूमती रही हर ओर ज़िस्म लहराता रहा

रूह को जब शक्ल मिली  तो आईने ने उसको भी नकार दिया
ज़िस्म से निकलकर  रूह जाता रहा  ज़िस्म  बस पुकारता रहा

हुनर पर यकीं था  तो ज़माने से  न जाने क्यूँ  उम्मीद  लगा बैठे
उम्मीद के तराजू पर हर हुनर "धरम" बस उम्र भर झूलता रहा