Monday 13 March 2017

चंद शेर

1.

जो मैंने दिखाया ज़ख्म तो एक और ज़ख्म मुझे मिल गया
तेरे इस करम पर "धरम" मेरे दुश्मन का सर भी झुक गया

2.
जब भी अपने क़द-ओ-कामत का "धरम" ख़याल आता है
वो दिल दुखने वाली अपनी हर बात पर मलाल आता है

3.
एक तो पतझड़ औ" उसपर आँधी का आलम
सूखे हुए पत्तों को तो "धरम" खो ही जाना है

4.
"धरम" मिट्टी का शेर काठ का राजा कागज़ का घोड़ा
ज़िन्दगी के इस शतरंज के खेल को कब तुमने छोड़ा

5.
अब ज़िन्दगी की महज़ एक और चाल बाद उसके शह और मात
'धरम' कर लो कितना भी आरज़ू-औ-मिन्नत मगर न बनेगी बात

6.
तेरा इश्क़ 'धरम' शुरूर से खुमारी तक आ गया
ये तबियत बुलंदी से अब बीमारी तक आ गया

7.
बाद तेरे मरने के 'धरम' मुझमे अब मैं पूरा ज़िंदा हूँ
है सीने में धुआं होठों पर ज़ाम अब मैं पूरा रिंदा हूँ

8.
मेरे चेहरे पर मेरा अपना ही चेहरा निखरना बाकी है
ग़ुलाम के बाद "धरम" बादशाह का उभरना बाकी है

9.
किसे सराहूं किसको छोड़ दूं है यह बड़ा मुश्किल काम
चुप रहूँ "धरम" तो हासिल न होगा कभी कोई मुक़ाम

10.
मिट्टी के मोल भी "धरम"हम बिक नहीं सके
ख़ाक के सामने भी हम कभी टिक नहीं सके

11.
किस मिट्टी को खोजता उड़कर तू आकाश
अँधेरे में है ढूंढता "धरम" कौन सा प्रकाश

12
खालीपन के बीच 'धरम' एक और खालीपन का एहसास
मानो उठे नज़र जब ऊपर तो कहीं दिखता नहीं आकाश  


Friday 3 March 2017

मैं चाहता हूँ

सच्चाई से रु-ब-रु हूँ मगर ग़फलत में रहना चाहता हूँ
ऐ! हुस्न इस बुढ़ापे में भी मैं तेरे साथ बहना चाहता हूँ  

जो कल की बात भी आपने उसपर गौर नहीं फ़रमाया
उसी मसले में मैं आज कुछ और भी कहना चाहता हूँ

वो शान से उठा हुआ सर औ" कितने सल्तनत का ताज़
अपने काँधे पर सर का बोझ अब नहीं सहना चाहता हूँ

ऐसा कोई जहाँ न चाहिए की रुकूँ तो गिरने का डर रहे
ऐ! ज़मीं अब मैं ता-उम्र तुमसे लिपटकर रहना चाहता हूँ

उसका जूता इसका सर औ" फिर हर ओर क़त्ल-ऐ-आम
तेरे इस जहाँ से "धरम" अब तो मैं बस चलना चाहता हूँ