Sunday 31 December 2023

चाँदनी फिर मचल जाएगी

पता न था बज़्म में बात ऐसी भी चल जाएगी  
मायूसी  किसके दर पर पहले-पहल जाएगी
 
ख़ुशी का दामन अब और कितना थामना है 
थोड़ी देर और ठहर की शक्ल बदल जाएगी 

उन्हें गुमाँ है की बुलंदी उनके क़दमों तले है  
यकीं मान वो ज़मीं क़दमों से निकल जाएगी
 
जो रात आज आई है कल फिर वही आएगी
एक ख़बर थी कि चाँदनी फिर मचल जाएगी 

जो वादा था की अब ये मुलाक़ात आख़िरी है 
किसे ख़बर थी कि वो बात फिर टल जाएगी 

दो नज़रों का चिराग़ था रौशनी शबाब पर थी 
यक़ीं न था वो कि बुझने से पहले ढल जाएगी

दुआ की कुछ बात मुँह से निकल गई 'धरम' 
ये ख़याल न था की ज़ुबाँ ऐसे फिसल जाएगी     

Tuesday 26 December 2023

लफ़्ज़ कभी बे-लिबास न हुआ

तबी'अत आबरू में रही  चेहरा भी उदास न हुआ
तल्ख़ियाँ के दौर में लफ़्ज़ कभी बे-लिबास न हुआ

क़ब्र सीने में था मगर जब्र से महफ़ूज़ न रख सका    
दिल में छुपाया था  मगर पुख़्ता इहतिरास न हुआ
 
महज़ वक़्त का तक़ाज़ा था  एक रिश्ता पैदा हुआ  
उम्र भर साथ रहे मगर कभी रम्ज़-शनास न हुआ

उम्र को ता-उम्र तराशना  हमेशा आईना दिखाना  
बाद इस इल्म के भी कभी ज़माना-शनास न हुआ

कि हुस्न जब ढ़लान पर पहुँचा तो अंजुमन में कोई 
इश्क़ की बात न चली मख़्बूत-उल-हवास न हुआ 

कि न तो कोई ख़ौफ़-ए-ख़ुदा न ही कोई दीन-दारी
कभी ख़ुद की नज़र का भी "धरम" हिरास न हुआ

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इहतिरास: सुरक्षा
रम्ज़-शनास: इशारा समझने वाला 
बद-हवास: तंग 
ज़माना-शनास: समय के अनुकूल काम करनेवाला
मख़्बूत-उल-हवास: जिसके होश-ओ-हवास जाते रहे हों, दीवाना
दीन-दारी: धार्मिकता
हिरास: डर, ख़ौफ़