Friday 29 July 2016

चंद शेर

1.
फासले घट गए दूरियां भी कम हुई "धरम"
ये क्या कम है की मजबूरियां भी कम हुई

2.
कि मेरा मुक़ाबला अपने ही दर-ओ-दीवार से था
औ" वो दर्द भी "धरम" मेरे पुराने आज़ार से था

3.
हर मुक़ाम पर मेरी हस्ती महज़ ख़ाक की हो जाती है
हर बार मेरी ही गर्दन "धरम" हलाक़ की हो जाती है

4.
आ की क़ुबूल कर "धरम" तू इलज़ाम मेरे क़त्ल का
औ" की उतार फेंक शराफत की चादर पाने शक्ल से

5.
मेरे यार के शक्ल में अब तो बस सियार नज़र आता है
यहाँ तो हर कोई "धरम" मुझसे होशियार नज़र आता है

6.
अब क्यों कर दिल में आरज़ू हो की वफ़ा करे कोई गैर
खुद अपनी जमात से ही "धरम" जब अपनी न हो खैर

7.
आ के लब पे मर गई तिश्नगी उस बीमार की
देखा जब उसने डूबकर आखों में अपने यार की

8.
ग़म से जब वास्ता न रहा मेरा मुझसे कोई रिश्ता न रहा
खुद अपने ही घर से "धरम" निकलने का कोई रास्ता न रहा

9.
ख़िज़्र सी तन्हाई है हयात एक पैर पर चलकर आई है
जहाँ मैं रहता हूँ "धरम" वहां हर गली में मेरी रुस्वाई है

10.
"धरम" तेरा नाम ज़ुबाँ पे आया तो तरन्नुम आया
की बाद उसके फैसला-ए-हयात पर जहन्नुम आया




Saturday 23 July 2016

प्रथम प्रहर होना है

तुम तो तिमिर थे अब तुम्हें सहर होना है
हाँ इक छोटे से बीज को पूरा सज़र होना है

ज़माना तो हर रोज बरपाएगा क़हर तुझपर
मगर इस सब के साथ तुमको प्रखर होना है

ये मुमकिन है कि तेरी बात कोई भी न सुने
मगर तुमको तो ज़माने के सामने मुखर होना है

ग़ुर्बत में यहाँ हर मुफलिस की आँखें फूट गई हैं
तुमको तो मुफलिस-औ-मज़लूम की नज़र होनी है

यहाँ तो हर किसी का खुर्शीद डूबा हुआ है "धरम"
तुमको तो सबके दिवस का प्रथम प्रहर होना है

Tuesday 19 July 2016

भूल जाओ ख्वाइशें हज़ार रखना

इधर जो लग गई आग इसे तुम अब याद रखना
कि जला के अपना दिल तुम भी अब तैयार रखना

अपने इश्क़ के दरम्याँ का चिलमन मैंने हटा दिया
तुझे तो अब भी ठीक लगता है इसमें दीवार रखना

हम खूब वाकिब हैं तेरे अंदाज़-ए-ज़ुल्म-औ-सितम से
ये तेरी ही फितरत है यहाँ हर किसी को बीमार रखना

तेरा ज़िक्र सुनकर यहाँ आ गए हैं कई और दिलफ़रेब
ये इल्तिज़ा है तुम भी अपने आप को होशियार रखना

अब तो तेरे महफ़िल में न रौनक है औ" न ही क़द्रदान
अब तुम भूल ही जाओ "धरम" ख्वाइशें हज़ार रखना 

Sunday 3 July 2016

नज़र आता है

रूठना तो भूल गया हूँ मैं मगर मनाने का हुनर आता है
तुझमे तो मुझे अब भी कोई पुराना यार नज़र आता है

वो और होंगे जिनके ज़िंदगी के रास्ते वीरां हो गए होंगें
मैं जब भी निकलता हूँ मेरे हर रास्ते में सजर आता है

वो और होंगे जो इन्सां के मक़तल पर जश्न मनाते होंगे
मुझे तो यूँ हीं हर किसी के दर्द पर दर्द-ए-जिगर आता है

वो और होंगे जो क़त्ल-औ-फ़रेब करके भी भूल गए होंगे
मेरे चेहरे पर तो किसी झूठे इल्ज़ाम का भी असर आता है

छोटा सा मसला था मगर बात गिरेबां तक पहुंच गई "धरम"
यहाँ तो हर किसी को अपने आप में पैग़म्बर नज़र आता है