1.
फासले घट गए दूरियां भी कम हुई "धरम"
ये क्या कम है की मजबूरियां भी कम हुई
2.
कि मेरा मुक़ाबला अपने ही दर-ओ-दीवार से था
औ" वो दर्द भी "धरम" मेरे पुराने आज़ार से था
3.
हर मुक़ाम पर मेरी हस्ती महज़ ख़ाक की हो जाती है
हर बार मेरी ही गर्दन "धरम" हलाक़ की हो जाती है
4.
आ की क़ुबूल कर "धरम" तू इलज़ाम मेरे क़त्ल का
औ" की उतार फेंक शराफत की चादर पाने शक्ल से
5.
मेरे यार के शक्ल में अब तो बस सियार नज़र आता है
यहाँ तो हर कोई "धरम" मुझसे होशियार नज़र आता है
6.
अब क्यों कर दिल में आरज़ू हो की वफ़ा करे कोई गैर
खुद अपनी जमात से ही "धरम" जब अपनी न हो खैर
7.
आ के लब पे मर गई तिश्नगी उस बीमार की
देखा जब उसने डूबकर आखों में अपने यार की
8.
ग़म से जब वास्ता न रहा मेरा मुझसे कोई रिश्ता न रहा
खुद अपने ही घर से "धरम" निकलने का कोई रास्ता न रहा
9.
ख़िज़्र सी तन्हाई है हयात एक पैर पर चलकर आई है
जहाँ मैं रहता हूँ "धरम" वहां हर गली में मेरी रुस्वाई है
10.
"धरम" तेरा नाम ज़ुबाँ पे आया तो तरन्नुम आया
की बाद उसके फैसला-ए-हयात पर जहन्नुम आया
फासले घट गए दूरियां भी कम हुई "धरम"
ये क्या कम है की मजबूरियां भी कम हुई
2.
कि मेरा मुक़ाबला अपने ही दर-ओ-दीवार से था
औ" वो दर्द भी "धरम" मेरे पुराने आज़ार से था
3.
हर मुक़ाम पर मेरी हस्ती महज़ ख़ाक की हो जाती है
हर बार मेरी ही गर्दन "धरम" हलाक़ की हो जाती है
4.
आ की क़ुबूल कर "धरम" तू इलज़ाम मेरे क़त्ल का
औ" की उतार फेंक शराफत की चादर पाने शक्ल से
5.
मेरे यार के शक्ल में अब तो बस सियार नज़र आता है
यहाँ तो हर कोई "धरम" मुझसे होशियार नज़र आता है
6.
अब क्यों कर दिल में आरज़ू हो की वफ़ा करे कोई गैर
खुद अपनी जमात से ही "धरम" जब अपनी न हो खैर
7.
आ के लब पे मर गई तिश्नगी उस बीमार की
देखा जब उसने डूबकर आखों में अपने यार की
8.
ग़म से जब वास्ता न रहा मेरा मुझसे कोई रिश्ता न रहा
खुद अपने ही घर से "धरम" निकलने का कोई रास्ता न रहा
9.
ख़िज़्र सी तन्हाई है हयात एक पैर पर चलकर आई है
जहाँ मैं रहता हूँ "धरम" वहां हर गली में मेरी रुस्वाई है
10.
"धरम" तेरा नाम ज़ुबाँ पे आया तो तरन्नुम आया
की बाद उसके फैसला-ए-हयात पर जहन्नुम आया