Saturday 25 June 2016

बहुत ज़्यादा है

न जाने क्यों उसे अपने क़द का गुमान बहुत ज़्यादा है
उसे दिखता नहीं उससे भी ऊँचा मकान बहुत ज़्यादा है

उसके दरवाजे से जाकर लौटा तो कंगाल हो गया था मैं
औ" लोग कहते थे कि उसके पास ईमान बहुत ज़्यादा है

ये पसंद उसकी थी कि उस कमरे में कुछ भी न पसंद आई
हाँ! उस कमरे में अब भी बुजुर्गों का सामान बहुत ज़्यादा है

जो शराफत की चादर ओढ़कर नफ़रत करते हैं हम रिन्दों से
इस शहर में उसकी मय-ओ-हुस्न की दुकान बहुत ज़्यादा है

तुम्हें तो बोलने की बीमारी है तुम उसके यहाँ कभी मत जाना
काट दी जाती है "धरम" जिसकी चलती जुवान बहुत ज़्यादा है

Tuesday 7 June 2016

समझ बैठे थे

हम तो तेरे ज़ुल्फ़ को ही दामन-ए-यार समझ बैठे थे
औ" तेरे आरिज़ को ही बोसा-ए-रुख़सार समझ बैठे थे

हमें तो धोखा हुआ था कि हम तुझे दिलदार समझ बैठे थे
औ" महज उन चंद मुलाकातों को ही प्यार समझ बैठे थे

जो नज़र का चिराग जला तो हम तुम्हें यार समझ बैठे थे
औ" वो बस तेरी एक नज़र को ही हम दीदार समझ बैठे थे

वो तेरी दिल बहलाने वाली बातों को हम क़रार समझ बैठे थे
हाय! तुम सा कुलूख को "धरम" हम माहपार: समझ बैठे थे

शब्दार्थ
आरिज़ - गाल
बोसा-ए-रुख़सार - चूमने वाला गाल
कुलूख - ढेला, मिट्टी का टुकड़ा
माहपार: - चाँद का टुकड़ा