अतीत एक भोगा हुआ सत्य होता है जिसे भुला पाना मुझ जिसे लोगों के लिए बहुत कठिन है| मुझे तो अतीत का भोगा हुआ दुःख भी भविष्य में आने वाले किसी भी सुख के कल्पना से ज्यादा आनंद देता है| तुमको अभी मैं अपना वर्तमान तो नहीं कह सकता हाँ मेरा एक अतीत जरूर हो तुम| एक ऐसा अतीत जिसमें मुझे सुख और दुःख दोनों की अनुभूति हुई| तुम्हारे साथ बिताये हुए सुख के पल यदि रोमांचित करते हैं तो दुःख के पल भी आनंद ही देते हैं| इस पर मैं एक शेर कुछ इस तरह कहना चाहता हूँ:
तेरे पहलू में जो बीते मेरे पल हैं मेरे लिए अनमोल
ये लो तेरे सामने राज दिया मैं अपने दिल का खोल
तुम भविष्य के तरफ जिस अंदाज़ से देखती हो मैं ठीक उसी अंदाज़ में अतीत की तरफ देखता हूँ| मेरी नज़र में मेरे अतीत की शुरुवात और तुम्हारे भविष्य का अंतविंदु एक ही है| तो फिर हमारे जिस्म के दरम्याँ वर्तमान में इतनी दूरी क्यूँ है? हमारे रूह के दरम्याँ इतना सन्नाटा क्यूँ है? हमारे साँसों के दरम्याँ इतनी ठंढी क्यूँ है? तुम से रुख़्सत के वक़्त मैंने अतीत से जुड़े रिश्ते का एक धागा बुना था| उस धागे के एक सिरे को मैं अब भी पकड़ा हूँ और दूसरा सिरा तेरे इंतज़ार में अब भी सज़दे में झुका है| ग़र तुम भूल गई वो वाक़्या तो लो मैं तुम्हें याद दिला देता हूँ
मैंने तो तुझसे रुख़्सत के वक़्त अतीत को वर्तमान से जोड़ना चाहा था
मगर पता नहीं क्यूँ तुम्हारे दिल में मेरे लिए सिर्फ फैला सन्नाटा था
तुम्हारे लिए अतीत से वर्तमान में आकर भविष्य में झांकना, खो जाना बहुत आसान प्रतीत होता है| क्या अतीत का प्रेम ऐसे मर सकता है? यदि हाँ तो वो प्रेम नहीं महज एक छलावा है| और यदि नहीं तो क्यूँ तुम्हारे आखों के अश्क़ सूख गए? लब ख़ामोश हो गए? जिस्म रूह विहीन हो गए? संवेदनाओं में कोई कराह नहीं? आवाज़ में कोई आह नहीं? इशारों में कोई आहट नहीं? मौन में कोई चीत्कार नहीं? सन्नाटे में कोई शोर नहीं? तुम्हें यकीं न हो तो न हो मगर मैं तुम्हारे रूह को हर वक़्त ढूंढता हूँ:
तेरे रूह की खोज में मैं खुद ही कहीं खो रहा हूँ
ये लो तुम्हारे ही बनाये कब्र में अब मैं सो रहा हूँ
तुम्हारे सुनहरे भविष्य की सबसे छोटी कूद भी अतीत के सबसे ऊँची दीवार से भी ऊँची होती है| इसलिए कोई भी अतीत तुम्हारे भविष्य का रोड़ा नहीं बन सकता| तुमने अतीत की कई ऐसी दीवारें लाँघी हैं| खूब इल्म है तुमको ऐसे कूदने का|
लाँघो हर प्रेम की दीवार कि तेरे लिए तो हैं आसमाँ हज़ार
तुम क्यूँ कर याद करो उस अतीत को जो रिश्ता था बीमार
बाहों की वो कैची होती थी और होती थीं अपनी आँखें चार
जब प्रेम ही था झूठा तो अब क्यूँकर इसपर करना विचार
मुझे अब भी मेरा हर अतीत प्यारा है| तुम भी याद करो, अपने सीने में अपना दिल रखो, रूह को स्पर्श करो, शायद कुछ याद आ जाए| हाँ जब भी तुम ऐसा करना, अपनी आखें बंद रखना| खुली आखों से तुम्हें अतीत में तो सिर्फ ग़ुबार ही दिखता है| उस अतीत को याद कर तुम्हारी स्मृति में ये शेर:
क्यूँ मैं अब भी अतीत के झूले में झूल रहा हूँ इसका मुझे पता नहीं
किसी अतीत का इतना व्यसन भी किसी के लिए होता अच्छा नहीं
तेरे पहलू में जो बीते मेरे पल हैं मेरे लिए अनमोल
ये लो तेरे सामने राज दिया मैं अपने दिल का खोल
तुम भविष्य के तरफ जिस अंदाज़ से देखती हो मैं ठीक उसी अंदाज़ में अतीत की तरफ देखता हूँ| मेरी नज़र में मेरे अतीत की शुरुवात और तुम्हारे भविष्य का अंतविंदु एक ही है| तो फिर हमारे जिस्म के दरम्याँ वर्तमान में इतनी दूरी क्यूँ है? हमारे रूह के दरम्याँ इतना सन्नाटा क्यूँ है? हमारे साँसों के दरम्याँ इतनी ठंढी क्यूँ है? तुम से रुख़्सत के वक़्त मैंने अतीत से जुड़े रिश्ते का एक धागा बुना था| उस धागे के एक सिरे को मैं अब भी पकड़ा हूँ और दूसरा सिरा तेरे इंतज़ार में अब भी सज़दे में झुका है| ग़र तुम भूल गई वो वाक़्या तो लो मैं तुम्हें याद दिला देता हूँ
मैंने तो तुझसे रुख़्सत के वक़्त अतीत को वर्तमान से जोड़ना चाहा था
मगर पता नहीं क्यूँ तुम्हारे दिल में मेरे लिए सिर्फ फैला सन्नाटा था
तुम्हारे लिए अतीत से वर्तमान में आकर भविष्य में झांकना, खो जाना बहुत आसान प्रतीत होता है| क्या अतीत का प्रेम ऐसे मर सकता है? यदि हाँ तो वो प्रेम नहीं महज एक छलावा है| और यदि नहीं तो क्यूँ तुम्हारे आखों के अश्क़ सूख गए? लब ख़ामोश हो गए? जिस्म रूह विहीन हो गए? संवेदनाओं में कोई कराह नहीं? आवाज़ में कोई आह नहीं? इशारों में कोई आहट नहीं? मौन में कोई चीत्कार नहीं? सन्नाटे में कोई शोर नहीं? तुम्हें यकीं न हो तो न हो मगर मैं तुम्हारे रूह को हर वक़्त ढूंढता हूँ:
तेरे रूह की खोज में मैं खुद ही कहीं खो रहा हूँ
ये लो तुम्हारे ही बनाये कब्र में अब मैं सो रहा हूँ
तुम्हारे सुनहरे भविष्य की सबसे छोटी कूद भी अतीत के सबसे ऊँची दीवार से भी ऊँची होती है| इसलिए कोई भी अतीत तुम्हारे भविष्य का रोड़ा नहीं बन सकता| तुमने अतीत की कई ऐसी दीवारें लाँघी हैं| खूब इल्म है तुमको ऐसे कूदने का|
लाँघो हर प्रेम की दीवार कि तेरे लिए तो हैं आसमाँ हज़ार
तुम क्यूँ कर याद करो उस अतीत को जो रिश्ता था बीमार
बाहों की वो कैची होती थी और होती थीं अपनी आँखें चार
जब प्रेम ही था झूठा तो अब क्यूँकर इसपर करना विचार
मुझे अब भी मेरा हर अतीत प्यारा है| तुम भी याद करो, अपने सीने में अपना दिल रखो, रूह को स्पर्श करो, शायद कुछ याद आ जाए| हाँ जब भी तुम ऐसा करना, अपनी आखें बंद रखना| खुली आखों से तुम्हें अतीत में तो सिर्फ ग़ुबार ही दिखता है| उस अतीत को याद कर तुम्हारी स्मृति में ये शेर:
क्यूँ मैं अब भी अतीत के झूले में झूल रहा हूँ इसका मुझे पता नहीं
किसी अतीत का इतना व्यसन भी किसी के लिए होता अच्छा नहीं