Thursday 31 July 2014

मोहब्बत की इन्तिहाँ तक जाऊंगा

मैं तो मोहब्बत की इन्तिहाँ तक जाऊंगा
तेरे जिस्म से लेकर तेरी जाँ तक जाऊंगा

मेरे दिल में मिलन-ए-नज़र-ए-चिराग जल चुका है
तेरे इंतज़ार में ज़ीस्त के अंतिम ख़िज़ाँ तक जाऊंगा

ये मोहब्बत! है इसमें बे-सबब रुस्वाई तो होती ही है
तुझको पाने मैं तेरे अंतिम नक्श-ए-पाँ तक जाऊंगा

बिन तेरे मेरी ज़िंदगी बस एक तन्हाई की रात है "धरम"
रौशन-ए-ज़ीस्त के लिए हद-ए-सितम-ए-दौराँ तक जाऊंगा 

Monday 14 July 2014

लब पे ताला पड़ गया

ज़रा सी बात थी मगर रंग गहरा पड़ गया
दिल टूटा ही था की ज़ख्म गहरा पड़ गया

अब तो कोई राज़ दफ़न भी नहीं है सीने में
दिल में झांक कर देखा जिस्म ठंढा पड़ गया

हसरत भरी निगाह भी अब काम नहीं आती
जो उतरा दरिया-ए-इश्क़ में तो सूखा पड़ गया

जब से मेरी ज़िंदगी का आफताब बे-वक़्त डूबा है
चौदवीं के महताब का भी रंग काला पड़ गया

इस शहर में अब तो हर कोई मुझसे खफ़ा है "धरम"
जो पूछा हाल-ए-दिल तो लब पे ताला पड़ गया 

Sunday 6 July 2014

अब नहीं मिलता

दूर तलक अब कोई बूढ़ा सज़र नहीं मिलता
राह-ए-ज़िंदगी में कोई हमसफ़र नहीं मिलता

हम तो खड़े हैं कई सालों से चौहरे पर मगर
मुझे अपनी तबीयत का कोई डगर नहीं मिलता

पेश-ए-नज़र भी किये औरों का नज़राना भी लिया
मिले जो दिल को सुकूँ ऐसा कोई नज़र नहीं मिलता

मर्ज़-ए-इश्क़ में तो हरेक दवा नाकाम होती है "धरम"
कर दे जो तबीयत हरी ऐसा कोई ज़हर नहीं मिलता 

Friday 4 July 2014

चंद शेर

1.
दो दिलों का फ़ासला कुछ यूँ बढ़ता गया
गोया बुढ़ापे का रंग जवानी पर चढ़ता गया

2.
ज़ूनू-ए-इश्क़ में गर्क-ए-दरिया का सफर अभी बाकी है
एक रोज मुझको डूबना है मगर वो मंज़र अभी बाकी है