Friday 10 July 2015

तो फिर रिहाई भी हो

मोहब्बत अगर कैद हो तो इससे फिर रिहाई भी हो
ताल्लुक़ात हद से बढ़ जाये तो फिर जुदाई भी हो

कोई जरुरी नहीं ज़िंदगी हमेशा इज़्ज़त से ही गुजरे
खुद को ज़िंदा रखने के लिए थोड़ी जगहंसाई भी हो

इश्क़ का आगाज़ कर अंजाम तक पहुँच ही नहीं पाते
एक ज़ख्म खाने के बाद ज़ख्मों से आशनाई भी हो

बाजार-ए-हुस्न में तुम दामन-ए-पाक लिए फिरते हो
ऐसे जगह में तो "धरम" शहंशाहों की रुस्वाई भी हो 

Friday 3 July 2015

चंद शेर

1.

मेरे टूटे दिल की तस्वीर बनाकर दीवार पर लटका दिया
तुमने अपने बज़्म में मुझे मौत के बाद भी रुस्वा किया

2.

"धरम" आ की मेरे पास अब सिर्फ अन्तिम सांस बाकी है
सारे ज़ख्म मर चुके हैं अब न कोई दूसरी आश बाकी है

3.

हुस्न क्यों आज घबराकर "धरम" इश्क़ की पनाह मांग रहा है
जो कभी सब का प्यारा था वो अब सिर्फ एक निगाह मांग रहा है

4.

एक तो ये बेरंग जवानी और उसपर कितनी याद पुरानी
चुभते हैं तीर ही दिल में जब याद आए वो रुत मस्तानी

5.

जब भी ज़िक्र-ए-इश्क़ होता है दिल उदास होता है
मोहब्बत का एक-एक ज़ख्म दिल के पास होता है