बर्षों पहले जब कभी मैं
अपने आँगन के धुल में लेट कर
माँ माँ कहकर पुकारता था
तब माँ अपने आँचल से
मेरे बदन पर लगे धुल को झाड़ती थी
और फिर धुल लगे उस आँचल को
अपने कमर में लपेट लेती थी
बर्षों पहले जब कभी मैं
पिताजी की ऊँगली पकड़ कर स्कूल जाता था
और गर्मी के दिनों में जब
वो छाता लेना भूल जाते थे
तब वो मुझसे कहते थे
कि तुम मेरे परछाही में चलो
तुम्हे धुप नहीं लगेगी
अपने आँगन के धुल में लेट कर
माँ माँ कहकर पुकारता था
तब माँ अपने आँचल से
मेरे बदन पर लगे धुल को झाड़ती थी
और फिर धुल लगे उस आँचल को
अपने कमर में लपेट लेती थी
बर्षों पहले जब कभी मैं
पिताजी की ऊँगली पकड़ कर स्कूल जाता था
और गर्मी के दिनों में जब
वो छाता लेना भूल जाते थे
तब वो मुझसे कहते थे
कि तुम मेरे परछाही में चलो
तुम्हे धुप नहीं लगेगी